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________________ प्रकरण - १०; सौराष्ट्र का ऐतिहासिक सामग्री .२२५ "कितने ही प्रान्तों के फल-फूल मात्र" के रूप में है, जिसमें उनके अर्थ का साधन करने वाली कोई भी बात नहीं छूट पाई है। फिर, इन प्रदेशों में ऐसी सामग्री की भी कमी नहीं है जिसका उपयोग शोध [विषयक प्रवृत्ति को समान रूप से सम्मानित एवं प्रोत्साहित करने में किया जा सकता है, चाहे उसके मूलतन्तु इतने प्रभावशील न हों जितने कि उस देश की सामग्री के, जहाँ पर हमने जन्म लिया है अथवा उन राज्यों में प्राप्त सामग्री के, जो कि उस देश से सम्बद्ध हैं । गौण होते हुए भी इन विषयों में अनुसंधान की जो अभिरुचि उत्पन्न होती है वह सुनिश्चित प्रकार की होती है। शिलालेखों के आधार पर चरित्रों एवं ऐतिहासिक वृत्तों के तिथिक्रम के तथ्यों को निश्चित करना, भाटों के लेखों से जीत, तुरुष्क अथवा तक्षक, बल्ल, अर्यस्प, हूण, कोठी तथा अन्य विदेशी नामधारी जातियों के उत्तरी एशिया से चल कर इन प्रदेशों में बसने के क्रम का पता चलाना, उन विभिन्न पूजा-प्रकारों पर विचार करना जो वे अपने 'पूर्व पुरुषों की भूमि' से यहाँ पर लाए और यहाँ से जिन लोगों को हटा कर वे बस गए; उनके रहन-सहन आदि के प्रकारों में घुलने-मिलने से जो प्रांशिक परिवर्तन हुए उनके विषय में अनुमान लगाना, तथा इस बात की भी शोध करना कि उनकी प्राचीन आदतों और संस्थाओं में से कितनी अब भी बच रही हैं-ये ऐसे विषय हैं, जो किसी भी विचारशील मस्तिष्क के लिए थोड़े और गौण नहीं हैं, और इस सौर प्रायद्वीप में शोध के लिए जो सुविधाएँ प्राप्त हैं वे प्राय: भारत के किसी भी अन्य शोध-क्षेत्र में प्राप्त सुविधाओं से बढ़ कर हैं। बौद्धमत यहीं पर पला था, यही वह भूमि है जहाँ पर एतन्मतावलम्बियों का जन्म हुया अथवा उस मत का पोषण और संरक्षण उस समय हुआ जब कि उनको अन्य प्रदेशों से निकाल दिया गया था अथवा वे स्वयं ही वहाँ से चल कर इधर आ गये थे । कच्छ की खाड़ी से सिन्ध के डेल्टा तक फैला हुआ यह सायराष्ट्रीन (Syrastrene) अथवा सूर्य-पूजक सौरों का प्रान्त एरिया (Aria) और बॅक्ट्रीयाना (Bactriana) के अग्निपूजकों के लिए सिन्धु नदी द्वारा विभाजित अवश्य था परन्तु बौद्धों के लिए इसमें कोई 'अटक' नहीं थी। उनकी अनुश्रुतियाँ प्रमाणित करती हैं कि इसलाम के आगमन से बहुत पूर्व ही उनके महाभिक्षु पश्चिम में स्थित अपने विहारों की यात्रा करते समय इस नदी को पार किया करते थे। जरदुश्त (Zerdusht) और सामानियों (Samaneans) की भूमि एरिया (Aria) में बौद्धमत के लिए प्रयुक्त आर्य (Arhya) और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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