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________________ २२४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा इस दुर्घटना से कितने ही वर्षों बाद अणहिलवाड़ा के बचे-खुचे राज्य पर सहारन के रूप में एक नये वंश का अधिकार हुआ, जो प्राचीन परंतु अब निःशेष, टाक जाति का था; परंतु इसलाम धर्म में परिवर्तित होने के कारण सहारन ने मुज़फ्फर नाम धारण करके अपने नाम और जाति को छुपा लिया था | उसका पुत्र' सुप्रसिद्ध अहमदशाह था जो शासकों (राजानों) की एक दीर्घ परम्परा कायम करने के सपने देख रहा था; अतः उसने गुजरात की राजधानी को सरस्वती के किनारे से उठा कर साबरमती के किनारे स्थापित की। जब प्राचीन राजधानी ध्वस्त चंद्रावती से लाए हुए अवशेषों से अहमदाबाद बन कर तैयार हो गया तो समय की गति के अनुसार धीरे-धीरे सब लोग अणहिलवाड़ा को भूल गए; और जब अहमदशाही तथा उनके परवर्ती एवं अधिक वैभवशाली तंमूर वंशीय सुलतान भी बारी बारी से भुला दिये गये और उनका अधिकार गाय[क] वार ( साधारण ग्वाले ) राजाओं के हाथ में चला गया तो अहमदाबाद की बारी आई और वह नगर भी उपेक्षा में पड़ गया । दामाजी ने अपनी विजय की पूर्ण महत्वाकांक्षा से एक नया नगर बसाया अथवा वंशराज के नगर के उपप्रांत के चारों ओर परकोटा खड़ा कराया, परंतु अब वह अणहिलवाड़ा पट्टण 'अहिल की राजधानी' न कहला कर केवल पट्टण कहलाया । कुछ लोगों के लिए तो यह संक्षिप्त इतिहास राजानों के राज्यारोहण और उनके श्मशान में महाशयन के वृत्तांत के अतिरिक्त और कुछ प्रस्तुत नहीं करता, परंतु जो लोग गहराई से इस पर विचार करेंगे उनके लिए इसमें कितने ही संकेत, संदर्भ, वस्तुओं एवं पुरुषों के नाम तथा ऐसे ऐसे विचार मोजूद हैं, जिनको ठीक ठीक समझ लेने पर उन लोगों को उस विषय की बहुमूल्य सामग्री प्राप्त हो सकती है जिसे 'इतिहास का दर्शन' कहा जा सकता है-यथा- धर्म एवं तत्कालीन मतमतांतर; व्यापार और उसका प्राचीन जातियों में विस्तार; जातियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन; कलाएं, विशेषतः स्थापत्य, मूर्तिकला एवं मुद्राएं युद्ध, राजनीतिक एवं भौतिक भूगोल और इन ग्यारह सौ वर्षों में राजपूत राजात्रों के अंतर्जातीय व्यवहार । हमारे इतिहासकारों ने भी अतीत के अंधकारपूर्ण इतिहास में गोता लगा कर वे दार्शनिक परिणाम (तथ्य ) एवं उदाहरण प्रस्तुत नहीं किए हैं, जो उनकी कृतियों में आकर्षण भर सकते; उन्होंने जो ताना-बाना बुना है वह उस बहुरंगी सामग्री के आधार पर है जो कितने ही स्रोतों से प्राप्त की गई है; वह इतिहास के विस्तृत क्षेत्र में केवल ॐ ' वास्तव में ग्रहमदशाह मुज़फ्फर का पौत्र था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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