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________________ प्रकरण - १०; बलहरों के वंशज [ २२३ [पृष्ठ २२२ का शेष तो वहाँ पर स्थापत्यकला के कुछ बहुत सुन्दर नमूने मुझे देखने को मिले। टोडा के रायों ने एक सुरक्षित राज्य कायम कर लिया था और वे अधिक शक्तिशाली पड़ोसी राजाओं से किसी बात में कम न थे। इस राज्य में रिन बिनाइ (Rin Binai)', उणियारा, टोडरी, जहाजपुर और मांडलगढ शामिल थे। जहाजपुर और मांडलगढ के जिले मेशर की ओर से जागीर में थे। मांडलगढ में एक टूटे-फूटे तालाब पर मुझे दो बड़े पत्थर मिले, जिन पर इन रायों की वंशावलियां खुवी हुई थीं। इनमें इनको बालनोत (Balnote) लिखा है और अब तक भी ये लोग परम्परानुसार इसी प्रवटंक से सम्बोधित होते हैं, जिससे उनकी पित-भूमि (fatherland) से उनका सम्बन्ध ज्ञात होता है, पोत (ote) का अर्थ है 'सम्बन्धित' । मांडलगढ के बालनोतों के प्रतिनिधि मिरची. खेड़ा (Mircheakhaira) और बटवाडा (Butwarro) के मरदार हैं, जो अब तक राव पदवी धारण करते हैं, परन्तु उनके अधिकार में केवल एक एक ही गांव है। राय कल्याण ने टोडा खो दिया था। राजा मान ने इसे लेकर माम्बेर में मिला लिया । उस ने कल्याण को निधाई के पास कुछ जमीन दे दो, जहाँ वह अपनी समस्त बस्सी के साथ जाकर बस गया-बस्सी शब्द एक साथ, प्रजा और ग्रह देवताओं का घोतक है। जिस स्थान पर उसने अपना डेरा गाड़ा वहीं पर एक कस्वा बस गया, जो माज तक बस्सी कहलाता है और यहीं पर टोडा के रामों और प्रणहिलवाड़ा के महान् सिद्धराज का वंशज 'पद्वारह राज्यों की एवज तीन कौड़ी (२०४३-६०) प्रावमियों (प्रजा) पर राज्य करता है । मोरखा के प्राक्रमणों के कारण बस्सी के राष को यह दशा हो गई है । उसका सम्बन्धी, जो टोंक के राव की पदवी धारण करता था, वह भी अच्छी वशा में नहीं है । परन्तु, कितनी ही बीघा जमीन हाथ से निकल जाने पर भी इन लोगों के साप वैवाहिक सम्बन्धों में कोई कमी नहीं पाई है, क्योंकि राजपूत का मान धन के कारण नहीं होता। भामेर के जयसिह महान ने टोंक के गरीब सोलंकी घराने से भी एक पत्नी प्राप्त की थी । मेवाड़ में रूपनगर के ठाकुर भी टोंक-टोडा वंश की ही शाखा में है और अपने बड़े भाइयों की अपेक्षा अच्छी दशा में है। कहते हैं कि उनके पास सिद्धराज के 'रण शंख का कुल-चिह्न (heir-loom) मौजूद है। इन्हीं के द्वारा में इस वंश के भाट से मिला था। और भी बहुतसी मिश्रित जातियां अपने को अहिलवाड़ा के सोलंकियों से निकली हुई मानती हैं, जैसे सोंट (Sont) और कोठारिया के गूजर (वास्तव में, गुर्जरराष्ट्र के मूल निवासी), मोगणा और पानरवा तथा हाड़ोती में मऊ-मैदनो (Mow-Maidano) के भील, बोंकन (Bonkun) के सुनार एवं अन्य बहुत सी हस्तकलामों का ध्यवसाय करने वाली जातियां । इस प्रकार हमने किसी समय शक्ति-सम्पन्न बहरों का इतिहास उनके भाग्य-विपर्यय की सभी वशानों में प्रांडवीं शताब्दी से, जब वे अपहिलवाड़ा की गद्दी पर बैठे, उन्नीसवीं शताब्दी तक, जब वे देश में तितर-बितर हो गये, खोज मला है। ' यह अजमेर के पास 'भिणाय' हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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