________________
१२ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा जाग्रत हुई थी। इन टेढ़े-मेढ़े तंग रास्तों को पार कर बनास के उद्गम स्थान और सादड़ी दरें में से मैदान में निकल कर राइंपुर (राणपुर) के प्रसिद्ध जैन मंदिर को मैं देखना चाहता था । अरावली के मार्ग और पाबू की तलाश के बाद मेरा विचार प्राचीन नहरवाला' की अवशिष्ट खोज को पूरा करने का था। तदनन्तर वहीं से राणा वंश की परम्पराओं को निर्धारित और निश्चित करने के लिये वल्लभी की दिशा तलाश करने का भी था। इसके लिये खम्भात की खाड़ी में हो कर सौराष्ट्र प्रायद्वीप के किनारे पहुँचना था। अतएव मैंने यह निश्चय किया कि यदि हो सके तो जैन धर्म के केन्द्र-स्थल पालिताना और गिरनार के पर्वतों की यात्रा करूं और उसके पश्चात् द्वारिका में स्थित बल और कृष्ण के मंदिरों का दर्शन करके अपनी यात्रा समाप्त कर दू। वहाँ से बेट द्वीप होता हुआ कच्छ की खाड़ी पार करके जाड़ेचों की राजधानी भुज की यात्रा करूँ और माण्डवी की विशाल मण्डी को लौट आऊँ। फिर सिन्धु नदी के पूर्वीय किनारेकिनारे नाव में चल कर इसके समुद्र-संगम तक हिन्दुओं के देवालयों के अन्तिम दर्शन करू । अन्तिम कार्यक्रम के अतिरिक्त यह सब यात्रा मेंने पूरी कर ली। भारत में सिकन्दर के प्राक्रमणों के अन्तिम दृश्यों को देखे बिना ही मुझे अपनी समुद्री यात्रा में बम्बई की ओर अग्रसर होना पड़ा।
टॉड ने अपने इस उद्देश्य की पूर्ति अपनी इस यात्रा में ही नहीं की परन्तु उस यात्रा का यह विवरण लिखते समय भी उसने उपयुक्त इन्हीं सारी बातों की भोर पूरा-पूरा ध्यान दिया और उनके बारे में सविस्तार लिखा है। जिन-जिन क्षेत्रों में से टॉड तब गुजरा था उन सब ही स्थानों के जलवायु, प्राकृतिक परिस्थितियों और दृश्यों के साथ ही वहाँ के निवासियों का भी टॉड ने बड़ा सजीव सहानभूतिपूर्ण विवरण लिखा है । साथ ही उस क्षेत्र के निवासियों या वहाँ के इतिहास सम्बन्धी ऐतिहासिक प्रवादों या रोचक दन्तकथाओं को भी टॉड ने यत्र-तत्र जोड़ दिया है, जो कई बार प्रामाणिक नहीं होते हुए भी वहाँ के विगत इतिहास सम्बन्धी जनसाधारण की भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं पर बहुत उपयोगी प्रकाश डालती हैं । अरावली के भीलों के प्रति टॉड का विशेष आकर्षण था क्योंकि बहत ही कठिन समय पर उन्होंने राणा प्रताप और उसके वंशजों की भरसक सहायता की थी। अतएव इस यात्रा के प्रारम्भ में ही अरावली पहाड़ की श्रेणियों को पार करते समय टॉड ने वहाँ की स्वच्छंद भील जातियों के बारे में बहुत कुछ
१-अपहिलवाड़ा २-पश्चिमी भारत की यात्रा, पृ० ६-७ से संकलित।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org