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प्रकरण - १०; सारंगदेव
. [२२१ स्वामी था तथा उसके अधीनस्थ देव बन्दर एवं द्वीप के अधिकारी अन्य चावड़ा सरदारों के नाम लिखा गया था, जिसमें उनको व्यापारी सामान के कर की देख-भाल करते रहने के लिए आदेश दिए गए थे । यह कर सोमनाथ में स्थित महान् सूर्य-मन्दिर के जीर्णोद्धार के निमित्त समर्पित कर दिया गया था। चावड़े अब तक भी सूर्यदेव के भक्त थे। इस महत्वपूर्ण अभिलेख से चार मुख्य बातें प्रकट होती हैं। पहली यह कि सोमनाथ (अथवा चन्द्रमा के स्वामी) का मन्दिर सौरों द्वारा बनाया हुआ विशाल सूर्य-मंदिर है, जिनके कारण इस प्रायद्वीप का नाम सौराष्ट्र पड़ा है, जिसको बॅक्ट्रिया (Bactria) के ग्रीक राजा सायराष्ट्रीन (Syrastrene) कहते थे, जिनमें से दो अपोलोडोटस (Appollodotus) और (Menander) इसी ZUPOY' प्रदेश में शस्त्र लेकर आए थे। — दूसरी बात यह है कि देव द्वीप और पवित्र नगर सोमनाथ के चावड़ा राजा अधीनस्थ होते हुए भी चौदहवीं शताब्दी तक अपनी इस प्राचीन राजधानी पर अधिकार बनाए हुए थे, जहां से निष्कासित होने पर उन्होंने ७४६ ई० में अणहिलवाड़ा बसाया था।
तीसरी यह कि वलभी के स्वामी बालरायों का अपना संवत् चलता था जो विक्रम संवत् ३७५ अथवा ३१६ ई० से प्रारम्भ होता था। . ___ चौथी बात यह थी कि हरमज बन्दर का एक अरबी अमीर १२५० ई० में अपहिलवाड़ा के एक जहाज़ी बेड़े का एडमिरल' (नायक) था।
सारङ्गदेव संवत् १३२६ (१२७३ ई०) में गद्दी पर बैठा। इस दुःखपूर्ण समय में उसका इक्कीस वर्ष का राज्यकाल बहुत लम्बा निकला; परन्तु, अब वह समय शीघ्र ही आ रहा था जब कि अणहिलवाड़ा की गर्वभरी गर्दन झुकने वाली थी।
' इस विषय पर 'जिंक्शन्स् प्राव ही रायल एशियाटिक सोसाइटी' बॉ०१; प्र० ३१३ में
विवेचन देखिये। . साधारणतया लोगों को यह ज्ञात नहीं होगा कि एडमिरल (Admiral) शम्द अरबी भाषा
से निकला हुआ है, अर्थात् 'अमीर-अल-प्राव' (जल का स्वामी) से । ३ विचारश्रेणी और बॉम्बे गजेटियर के अनुसार सारङ्गदेव का राज्यारोहण संवत्
१३३६ में हुआ था। । सारङ्गदेव ने संवत् १३३१ से १३३४ नि. - राज्य किया। वही
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