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पश्चिमी भारत की यात्रा महानता की पराकाष्ठा पर न होते हुए भी वस्तुतः इसका कोई पतन नहीं हुआ था; अथवा यदि इतिहास और लोक-कथाओं में सुप्रसिद्ध देश के महान् राजा कर्ण और सिद्धराज के बाद 'तीनों बालों' (पागलों) के राज्यकाल में कुछ उतार भी आ गया था तो भी क्या इस देश की धन-सम्पत्ति और शान उस समय अपने वैभव के शिखर पर पहुंची हुई नहीं थी जब कि एक शताब्दी के बाद विदेशी आक्रमणों में बहुत कुछ सफाया हो जाने पर भी इतनी समृद्धि और समर्थता विद्यमान थी कि इन मंदिरों में से प्रत्येक की श्री-वृद्धि हेतु करोड़ों की धनराशि यहाँ के केवल तीन श्रेष्ठियों के अतिशय-धन कोष में से ही दान में दे दी गई ? हम कह सकते हैं कि यहाँ के श्रेष्ठी रोजा थे।' । . भीमदेव और उसके सामंत धारावर्ष ने मिल कर मुसलमानों के आक्रमणों के विरुद्ध गौरवपूर्ण प्रतिरक्षा की और बादशाह कुतुबुद्दीन को युद्ध में पराजित किया। इस युद्ध में कुतुब घायल भी हुआ; यही नहीं, उसके क्रमानुयायी भी प्रणहिलवाड़ा पर उस समय तक कोई विजय प्राप्त न कर सके जब तक कि आधी शताब्दी वाद कर अल्लाह का राज्य सर्वत्र स्थापित न हो गया। ..
अर्जुनदेव संवत् १३०६ (१२५० ई०) में गद्दी पर बैठा । उसने तेवीस वर्ष तक राज्य किया और वह प्राय: अपने पिता की हो नीति का अनुसरण करता रहा । उसने आक्रमणों से तो प्रतिरक्षा की, परंतु साथ ही मुसलमानों से मित्रता भी बढ़ाता रहा, जो बड़ी तेजी से उसके राज्य के चारों ओर बढ़ते जा रहे थे। फिर भी 'चालुक्य चक्रवर्ती' (वलभी का शिलालेख) 'चालुक्य सार्व. भौम' और साथ ही 'सदा विजयी' आदि उसकी पदवियों से ज्ञात होता है कि उसकी शक्ति में कोई कमी नहीं आई थी। यह शिलालेख एक प्रकार का
आज्ञा-पत्र है जो उसके जल-सेनापति हरमज (Hormuz) निवासी नूरुद्दीनफ़ीरोज के नाम, जो सोमनाथ के समीपवर्ती बिलाकुल (Billacul) बंदर का
'बाल मूलराज, भोला भीम और कर्ण गल।। • यह युद्ध ई० सं० ११९७ में हुआ था। कैम्बिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, भा० ३, पृ० ४३-४४ ३ प्रलादीन खिलजी। ४ क० टॉड के तिथिक्रम में ही गड़बड़ी नहीं है, राजाओं के नामानुक्रम में भी पर्याप्त विपर्यय है । वीसलदेव बाघेला वि० सं० १३०२ में त्रिभुवनपाल के बाद गद्दी पर बैठा था, उसको बाल मूलराज का उत्तराधिकारी बना दिया और बीसलदेव के उत्तराधिकारी अर्जुनदेव को भीमदेव के बाद गद्दी पर बिठा दिया है । वास्तव में वीसलदेव का समय वि० सं० १३०२-१३१८ है पोर मर्जुनदेव का १३१८-१३३१ वि० सं० । अर्जुनदेव वीसलदेव के भाई प्रतापमल्ल का पुत्र था।
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