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________________ [ २१ प्रकरण ( ११६३ ई.) से प्रारम्भ होता है । उसको 'भागेला' अथवा बाघेला वंश का प्रथम राजा क्यों कहते हैं, इसका कारण मुझे ज्ञात नहीं हुआ क्योंकि नाम परिवर्तन के विषय में जो श्राख्यान प्रचलित है वह कुमारपाल के पुत्र से सम्बन्धित है और उससे यह सूचित होता है कि सब से पहले मूलदेव ही इस नाम से संबंधित हुआ था । अस्तु, यह कोई अधिक महत्वपूर्ण विषय नहीं है क्योंकि वीसलदेव के बाद वाले शिलालेखों में भी इस वंश का वही पूर्व नाम चालुक्य अथवा सोलंकी प्रयुक्त हुआ है । इस राजा ने पन्द्रह वर्ष तक राज्य किया, परन्तु हमें इसके विषय में एक भी उल्लेख योग्य घटना का पता नहीं चलता । - १०; भीमदेव भीमदेव संवत् १२६४ (१२०८ ई०) ' में गद्दी पर बैठा और उसने बयालिस वर्ष से कम राज्य नहीं किया । इसके अतिरिक्त राज्यारोहण के बीस वर्ष बाद उसके मंत्रियों द्वारा चित्तौड़ के मंदिरों का निर्माण इस बात का स्वतः सिद्ध प्रमाण है कि जिन इसलामी शस्त्रों ने दिल्ली, कन्नौज और चित्तौड़ के राज्यों को उलट दिया था वे अणहिलवाड़ा के राज्य को कोई भी हानि नहीं पहुँचा सके थे । श्राबू में प्राप्त सभी शिलालेखों में उसे सार्वभौम शासक लिखा है और पृथ्वीराज ने जिनको किंचित् काल के लिए मुक्त करा दिया था वे आबू और चंद्रावती के परमार राजा भी पुनः उसकी आधीनता में आ गए थे। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि बल्हरों की शक्ति न दक्षिण में क्षीण हुई थी, न पश्चिम में । वास्तव में, वलभी के शिलालेख से, जिसमें उसके अनुवर्ती अर्जुनदेव के गुणों का वर्णन है, यह बात स्पष्टतया प्रमाणित हो जाती है कि केवल लार (लाट) देश ही नहीं वरन् सम्पूर्ण सौराष्ट्र पर उसका दृढ़ श्राधिपत्य था; हाँ, अरब के मल्लाहों को समुद्रतट पर बस्तियाँ बसाने की आज्ञा अवश्य मिल चुकी थी । हिलवाड़ा के वैभव का इससे अधिक सजीव प्रमाण श्रीर नहीं मिल सकता क्योंकि यदि श्राबू और तरङ्गी के पहाड़ों पर, चंद्रावती नगरी में तथा समुद्रतट पर एक साथ निर्मापित मंदिरों को इसकी उन्नतिशीलता का प्रमाण न भी माना जाय तो भी हम यह अवश्य कह सकते हैं कि यह राज्य उस समय Jain Education International " बाडमेर के पास किराडू के वि० सं० १२३५ (११७९ ई०) के लेख से ज्ञात होता है कि वह भीमदेव के राज्यकाल में लिखा गया था । इसी प्रकार डा० ब्युहलर द्वारा प्रकाशित ११ लेखों में से 8 वां ताम्रलेख संवत् १२९५ का है। इसके बाद १२६८ सं० का लेख (ताम्रपट्ट ) त्रिभुवनपाल के समय का है । प्रतः सिद्ध है कि भीमदेव ने संवत् १२३५ (११७६ ई०) से संवत् १२६८ (१२४१-४२ ई०) तक राज्य किया । कर्नल टॉड की एतद्विषयक तिथियां प्रामाणिक नहीं हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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