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प्रकरण - १०; पज्जूणराय
[ २१७ उसको इनमें से दस बन्दरगाह दे दिए तथा उसे अपने साथ दिल्ली ले गया। यह कच्छ-रा कौन था, इसका पता चलाने में मेरे सभी प्रयत्न विफल हुए । इस नाम से उस वंश की एक शाखा का बोध हो सकता है जिसके अधिकार में कच्छ का करद राज्य था क्योंकि अंतिम शब्दांश 'रा' 'का' दा' 'चा' ही इस भाषा में सम्बन्धकारक पहचानने की कसौटी है।
चौहानों के इतिहास में गुजरात पर इस आक्रमण का संवत् १२२४ दिया गया है, परन्तु सोलंकियों के भाटों ने भोला भीम की, मृत्यु का समय संवत् १२२८ लिखा है; यह अन्तर नगण्य है। इस प्रकार हमें एक और समकालिक-तिथिनिर्णायक तथ्य मिल जाता है, जिसकी पुष्टि हाँसी के शिलालेख से भी होती है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण युग था कि जब प्रायः सभी हिन्दू राज्य समाप्त हो रहे थे। जिस शिलालेख का ऊपर उल्लेख किया गया है, उसे मैं हाँसी-स्थित पृथ्वीराज के टूटे-फूटे महलों में से लाया था और उसो वर्ष माविवस हेस्टिग्स् के पास कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी में पहुंचाने के लिए भेज दिया था, परन्तु उसके बारे में आज तक कोई खबर नहीं मिली है । यह लेख केवल इसीलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि इससे अन्तिम हिन्दू-सम्राट् के समय का पता चलता है प्रत्युत इससे उसके अन्यान्य समकालीन राजवंशों का भी समय निर्णीत करने में सहायता प्राप्त होती है । इनमें से अहिलवाड़ा के साथ हुए युद्ध का एक उदाहरण विस्तारसहित लिखा जा चुका है । एक और है, वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है; वह है आम्बेर के राजाओं के महान पुरुषों का समय-निर्णय। राव पिरजण [प्रद्युम्न] उस समय आमेर का राजा था और वह चौहाण के सर्वाग्रणी सामन्तों में से था। उसका नाम हांसी के शिलालेख में भी हम्मीर के साथ सीमाप्रान्तीय महत्वपूर्ण गढ़ का संरक्षण करने के सम्बन्ध में उल्लिखित है। जिस युद्ध में पृथ्वीराज का पिता सोमेश्वर मारा गया था उसके वर्णन में भी राव पज्जूण का नाम आता है और एक छोटा सा 'समय' अथवा सर्ग भी 'पज्जूण सम्यौ' के नाम से दोनों युद्धों के वर्णन के बीच में रखा गया है। इस 'समय' में इस सामन्त के पराक्रम का वर्णन किया गया है कि किस प्रकार उसने सम्राट के मत्यु-स्थल पर खोई हई उसको कलंगी को खोज निकाला था। भाट ने उसकी सफलता और पाग में कलंगी के पुन: स्थापन का वर्णन किया है। हम इसे मारकेश्वर
' रासो में यह वर्णन 'पज्जून छोंगा' नाम से है, परन्तु कथावस्तु में अन्तर है। चालुक्यराज
भोला भीम ने रागिन के पुत्र महाबली मकवाणा के सिर पर 'छोंगा' (तुर्रा) बँधवा कर सेनापति बनाया और सोनिगरों की राजधानी (जालोर ?) पर आक्रमण करने भेजा। तब पृथ्वीराज ने अपने कछवाहा सामन्त पज्जून को सेनापति नियुक्त किया और
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