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पश्चिमी भारत की यात्रा मंहगी पड़ी । “पन्द्रह सौ घोड़े और पन्द्रह सौ प्रख्यात वीर (जिनमें पाबूपति जैत्र भी था) काम आये और इनके अतिरिक्त पांच सौ छोटे-मोटे योद्धा युद्धक्षेत्र में घायल होकर पड़े थे।" कवि ने जो युद्धोत्तर रात्रिकाल का वर्णन किया है उसे यहां पर उद्धृत करना अप्रासंगिक तो होगा परन्तु उपमाओं की छटा को देखते हुए यहाँ अवतारित करना अनुचित भी न होगा। ___ "पृथ्वीराज ने युद्ध में विजय प्राप्त की। यद्यपि वीरों के शरीर घावों से भरे हुए थे, फिर भी उन्होंने विजयशंख की ध्वनि की। पिता का वैर ले चुकने पर चौहान का क्रोध शान्त हो गया था। योद्धागण एक दूसरे की वीरता की प्रशंसा कर रहे थे। योद्धाओं का यश ही पृथ्वीराज का धन है । वे उस रात युद्धक्षेत्र में ही घायलों की देख-भाल करते रहे; परन्तु, वह रात बहुत लम्बी बीती; वे प्रातःकाल के लिए उत्सुक हो रहे थे। रात बीती, प्रात: कमल खिल उठा, रात भर जो भौंरा इसमें आबद्ध था उसने उड़ान भरी। तारे मन्द पड़ गए और रात्रि का काला पर्दा दूर हुआ। चन्द्रमा अन्तर्हित हो गया। मनुष्यकृत स्तवन को प्रवेश देने के निमित्त देवद्वार अनावृत हो चुके थे। रात के पक्षी (राजा) की मांखें फिर मुंदने लगी थीं। देवालयों में शंख-ध्वनि हो रही थी और सूर्यदेव ने अपनो यात्रा पुनः प्रारम्भ कर दी थी।" ___ इस परम चमत्कारिक वर्णन के बाद तुरन्त ही कवि की सहानुभूति उन लोगों के प्रति जाग उठती है जो उसके चारों ओर मरे हुए पड़े हैं और जो अव इस प्रकाशमान जगत् की किरणों से कभी प्रभावित न हो सकेंगे। वह कहता है "इस पृथ्वी पर कितने ही योद्धा उत्पन्न हुए हैं, जिन्होंने अपने शरीर तलवारों को अर्पण कर दिए हैं। स्वयं चन्द ने कितनी ही बार उनका यशोगान किया है । यह संसार एक स्वप्न है; इसमें जो कुछ है वह सब एक दिन नष्ट हो जायगा। मूर्खतावश लोग सांसारिक भोगों की कामना करते हैं । मृत्यु बधिक के समान है, परन्तु युद्ध में मृत्यु का पारितोषक प्राप्त करना ही वीरों का परम धन है; केवल तलवार की धार से ही अमरत्व प्राप्त किया जा सकता है।" सुरलोक (वीरों के स्वर्ग) के सुख-साधनों से सुसज्जित, मुसलमानों के जन्नत के विलासों से संवलित और स्कण्डेनेविया निवासियों के युद्ध और महाभोज से चित्रित यह सिद्धान्त राजपूतों में अपने स्वामी एवं देश के प्रति भक्ति उत्पन्न करने में सर्वथा पूरा उतरता है ।
दिल्ली और (पिता की मृत्यु के बाद) अजमेर के चौहान राजा ने अपनी विजय को पूरी की और “चालुक्य के चौरासी बन्दरगाहों पर अधिकार कर लिया।" उसने कच्छरा (Cutcra) नामक राजकुमार को गद्दी पर बिठाया और
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