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पश्चिमी भारत की यात्रा चौहान वीर के विषय में यहाँ अधिक न कह कर हम युद्ध के परिणाम पर आते है, जो सोमेश्वर के लिए घातक सिद्ध हुआ। इस परिणाम के विषय में अपने वर्णनीय युवक वीर के प्रति पक्षपात वर्तते हुए चन्द ने कहा है कि पृथ्वीराज उस समय उत्तर में नहीं था और उसकी अनुपस्थिति के कारण ही ऐसा हुमा । "जयसिंह का पुत्र' उत्तरीय नक्षत्र के समान है। फिर भी, यदि पृथ्वीराज वहाँ होता तो वह हमारी भूमि पर पर नहीं रख सकता था।" सच्चे राजपूत की भाँति उसने अपने शत्रु की भी प्रशंसा की है । "जब चालुक्य ने प्रस्थान किया तो दिल्ली के निवासी अपने-अपने घरों में काँप उठे। वसन्त-कालोन बहुरंगे पुष्प-समूह के समान प्रतीत होने वाला साँभर का ध्वज आगे बढ़ा। रक्त-रंजित रणक्षेत्र में सोमेश योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ था । युद्ध छः घड़ी तक चलता रहा और तब "पचास बलवान सामन्तों के साथ सोमेश ने युद्ध की लहरी का पान किया, अमरत्व प्राप्त किया। सोमेश ने सोमेश को उठा लिया। सांभरपति रणक्षेत्र में धराशायी हुआ और चालुक्य को पालकी में ले जाया गया। यदि चालुक्य और चौहान फिर कभी मिलेंगे तो दूसरे ही सामन्तों के साथ मिलेंगे क्योंकि इस युद्ध में आए हुए वीरों में से कोई भी नहीं बचा था। योगी लोग जीवन में लम्बे समय तक तपस्या करने के पश्चात् जिस गति को प्राप्त करते हैं वह सोमेश्वर ने एक ही क्षण में प्राप्त करली। संसार ने “धन्य, धन्य" उच्चारण किया और देवताओं ने कहा "शोक, शोक ।"3
इस युद्ध से अणहिलवाड़ा के राजा को शक्ति में कोई कमी नहीं आई; वह गुजरात के सत्रह हजार ग्रामों और प्रायद्वीप का स्वामी था, जिसके सीमान्त पर झालावाड़, काठियावाड़, देव और अन्य प्रान्तों का बार-बार उल्लेख हुआ है। चालुक्य को यह विजय ही अन्त में उसके सर्वनाश का कारण हुई । पृथ्वीराज, जिसके भाग्य में दिल्ली का प्रथम प्रौर अन्तिम सम्राट् होना लिखा था, अपने पिता का बदला लेने के लिए कृत-संकल्प हुआ। [रासो का] एकतालीसवाँ समय इस प्रकार प्रारम्भ होता है "नरेश के हृदय में भीम एक हरे घाव के समान अथवा काँटे के समान कसकता रहता है । उसे वह अग्नि खाए जा रही है, जिसे शत्रु के रक्त से हो बुझाई जा सकती है।" वह अपने दुःख को इस प्रकार प्रकट करता है-"मेरे पिता का झगड़ा [वर] अभी मेरे सिर पर है; जब मैं पानो
' अर्थात् अन्तिम राजा अजयसिंह का पुत्र । 'जय' का अर्थ है जीत, 'अजय' अर्थात् दुर्जय । २ यहाँ एक 'सोमेश' का अर्थ 'शिव' है, जो सोम अर्थात् चन्द्रमा को धारण करते हैं। 3 क्योंकि उन्हें भय हुआ कि वह स्वर्ग में प्राकर उनकी स्वतन्त्रता का अपहरण कर लेगा।
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