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प्रकरण - १०; अपहिलपाड़ा और अजमेर का युद्ध [ २११ इस प्रकार भाषण किया, "पुराना वैर मेरे हृदय में सुई की तरह चुभ रहा है। फिर भी, साँभर मेरे सामने क्या है ? परन्तु, जब तक में उसके स्वामी का शिर रंग न दूंगा तब तक मुझे चैन नहीं है। क्या सोजत का युद्ध जीत लेने से ही उसे युद्ध का खिलाड़ी मान लिया गया है ? जब तक उससे युद्ध न करूँगा वह मेरे शरीर में काँटे की तरह कसकता रहेगा ।" फिर राणिङ्गराव, चूड़ासमा भान, श्याम (Sham) नरेश' शम्भु (Shamoh) और काठी योद्धा थानुंग (Thanung), ने जिसकी बुद्धि गहरी और शरीर सुन्दर था तथा जो युद्ध में
अपने राजा की सहायता करने में सक्षम था, बारी-बारी से उत्तर दिए। क्रोध ६ से उबलता हा वीरसिंह चौहान भी, जो अपने क्रोध से ज्वालामुखी को भी
समुद्र में डुबो सकता था, वहीं उपस्थित था। सबने शपथ ली कि वे ऐसा युद्ध करेंगे कि समस्त संसार उसको सुनेगा।"
फिर सैन्य-प्रस्थान का वर्णन है । "सेना ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है त्यों त्यों उत्तर दिशा से उमड़ कर पाते हुए पर्वताकार बादलों के समान बड़ी होती जाती है । बली और उत्साही योद्धा कदम बढ़ाते हैं और कहते हैं "हमसे बराबरी करने वाले कहाँ हैं ?" जिस प्रकार राम के वीरों ने लङ्का पर चढ़ाई की थी उसी प्रकार चालुक्य को सेना चौहान पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रही थी। उनकी गिनती करने में आँखें चकरा जाती थीं। अमरसिंह' सेवड़ा के क्या कहने ? उसके मुख पर राजभक्ति स्पष्ट झलक रही थी; उत्साहवर्द्धक छन्दों के खजाने, भैरूं बारठ के विषय में भी क्या कहें ? वेदों में पारंगत लीलाघर ब्राह्मण अद्वितीय था और सुन्दर मुखवाला दण्डरूप चारण भी बेजोड़ था । ये चारों मन्त्री भीम के साथ थे।"
१ क्या हम अनुमान करें कि उसकी सेना में सीरिया के सैनिक थे? श्याम ही सीरिया है।
यह क्रूसंड्स का समय था और शाहबुद्दीन ने फ्रेंकों [फिरंगियों को अपनी सेना में स्थान दिया था। २ यह काठियों के शारीरिक सौन्दर्य का बहुत अच्छा उदाहरण हैं । ये लोग अलक्षेन्द्र
(सिकन्दर) के पुराने शत्रु थे, जो पास पास की जातियों की अपेक्षा अधिक गोरे ही नहीं होते प्रत्युत नीली प्रांखों के कारण इनका उद्गम भी उत्तरवेशीय ही प्रतीत होता है। ३ सेवड़ा जैन-पुरोहित होते हैं। परन्तु, हमें यहां प्रसिद्ध कोशकार अमरसिंह का भ्रम नहीं
होना चाहिए क्योंकि संयोगवश वह भी कितने ही बल्हरा राजानों के दरबार में रहा था। ये लोग तांत्रिक और ऐन्द्रजालिक होते थे। जहाँगीर ने एक बार नाराज हो कर इनको निकाल दिया था।-तुजके जहाँगीरी (प्र. अनु. रॉजर्स,बैवरिज भा. १, पृ.४३ ) ४ प्रणाहिलवाड़ा के राजा की सभा में ब्राह्मण मन्त्री था इसी से यह अनुमान नहीं लगा लेना
चाहिए कि वह शंय था।
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