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________________ २०८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा और प्रत्येक को एक-एक पोशाक एवं एक-एक सौ घोड़े प्रदान किए।"' चौहान के बड़े सामन्तों में उनकी गिनती हुई और उत्कर्ष उनके भाग में आया; तब ही एफ दिन दुर्भाग्यवश "सुमेरु के समान [विशाल] सोमेश का पुत्र अपने सामन्तों के बीच में बैठा हुआ प्राचीन काल का इतिहास सुन रहा था तब प्रताप की आत्मा जाग उठो और कथा सुनते सुनते ज्यों ही उसका उत्साह बढ़ा तो उसका हाथ अपने आप मूंछों पर ताव देने लगा।" । .....अपने से बड़ों के सामने मूंछों पर ताव देना (जो अवज्ञासूचक कार्य समझा जाता है) राजपूतों में एक विशेष प्रक्षम्य अपराध माना जाता है। चौहान राजा के भाई और पृथ्वीराज के काका कन्हराय ने प्रताप की इस चेष्टा को देख लिया । पृथ्वीराज के बाल्यकाल में कन्हराय हो राज्य का सैन्य-संचालन करता था; फरिश्ता ने भी 'खाण्डेराय' के नाम से गजनी के सुल्तान के साथ उसके द्वन्द्व-युद्ध और विजय का वर्णन करके उसको अमर कर दिया है। प्रस्तु, भयानक कन्ह काका ने उसकी इस चेष्टा का विपरीत अर्थ लगा कर उसे जमीन पर गिरा दिया। प्रताप के भाइयों ने भी उसकी रक्षा करने व बदला लेने के लिए तलवारें निकाल लीं। बड़ो गड़-बड़ी हुई; युवक राजा तो किसी तरह बच गया परन्तु, सभामण्डप में मृत्यु और रक्तपात का हश्य उपस्थित हो गया। वे सभी भाई वीरगति को प्राप्त हुए और भाट की प्रशंसा के पात्र बन गए। हो सकता है, अपने मन की करने के निमित्त उसी [भाट] ने इस कुकृत्य के लिए उनको प्रोत्साहित किया हो। "चालुक्य धन्य हैं, जिन्होंने परदेश में भी स्वाभिमान की रक्षा की । संध्या समय महादेव' ने अपनी मुण्डमाला की पूर्ति की। योगिनियों ने अपने खप्पर अच्छी तरह भर लिए । चौहान वीर खन में लथपथ पड़े थे; यमराज के समान कन्ह उनके बीच में स्थाणु के सदृश खड़ा था क्योंकि उसी सुमेरु के भाई ने सभाभवन के क्षेत्र को रक्त से प्राप्लावित किया था। ' रासो में सात वीरों को सात घोड़े देना लिखा है-- "बाजि सपत दीने बगसि, संबोधे सत भ्रात । एक एक सिरपाव दिय, बहु प्रादर किय बात ॥" १२ २. प्रसिद्ध मुसलिम इतिहासकार । ३ युद्ध के देवता की माला नरमुण्डों की होती है। ४ एक प्रकार की राक्षसी, जो युद्ध क्षेत्र में चक्कर लगाया करती है। "पात्र भरें जुग्गिनि रुहिर, ग्रिध्धिय मंस डकारि ।। नच्यौ ईस उमया सहित, रुण्डमाल गल धारि ॥"३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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