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ऐसे थे राजपूत, और ऐसे ही हैं भी, जो एक तिनके के लिए ही लड़ मरें । इसी कारण 'भेंडा' ( Bhenda ) अथवा भोला पद उनके लिए सर्वथा उपयुक्त सिद्ध होता है तथापि चन्द ने ऐसी ही बातों के लिए उनकी प्रशंसा की है । " कन्ह भारत में भीम के समान है । वह रावण के समान है । कन्ह ने ( बड़ेबड़े) बलशालियों के नथनों में नाथ डाल दी ।" "
प्रकरण १०: अणहिलवाड़ा और अजमेर का युद्ध
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यही वह नासमझी का कार्य था जिससे अणहिलवाड़ा और अजमेर के पुराने प्रतिद्वद्वियों में युद्ध छिड़ गया; दोनों के प्राण गए और मुसलमानों की अन्तिम विजय के लिए मार्ग निष्कण्टक हो गया । 'देशवाटी' का दण्ड भुला दिया और जिस कारण यह दण्ड दिया गया था वह अपराध भी क्षमा कर दिया गया, "चालुक्य वंश के सम्मान पर आँच श्रा गई थी ।" प्रताप और उसके
'रासो' में लिखा है कि झगड़ा समाप्त होने पर सामंतगण कन्ह को समझा-बुझा कर किसी तरह घर ले गए । पृथ्वीराज को इस दुर्घटना से बहुत दुःख हुआ । कन्ह को जब मालूम हुआ कि पृथ्वीराज नाराज हो गया है तो वह दरबार में नहीं गया और अपने घर बैठा रहा । तीन दिन तक अजमेर में हड़ताल रही 'तीन दिवस अजमेर में, परी हट्ट इटनार" । सात दिन हो जाने पर भी जब कन्ह दरबार में नहीं आया तो कुअर पृथ्वीराज स्वयं उसके घर पर मनाने गया और कहा कि "प्राकृत के मारे घर आए चालुक्यों को अकारण मारने से आपके शिर पर कलंक का टीका लग गया है।" कन्ह ने कहा "मेरे रहते दरबार में कोई मूंछ पर हाथ रखे, यह में सहन नहीं कर सकता ।" तब पृथ्वीराज ने कहा 'हे कन्ह, आप एक बात मान लें तो सभा में ऐसो घटना भविष्य में न हो सकेगी, वह यह कि आपकी आँखों पर रत्नजटित पट्टी बाँध दी जाय।" कन्ह ने मान लिया, तब से उसकी आँखों पर पट्टी रहने लगी
'सो पट्टी निसदिन रहै, छोरि देइ द्वं ठाम ।
के सिज्या वामा रमत के छुट्टत संग्राम ॥४७ इसो कन्ह चहुप्रान, जिसो भारथ्थ भीम वर । इसो कन्ह चहुमान, जिसो द्रोनाचारज वर | इसो कन्ह चहुम्रान, जिसो दससीस बीस-भुज । इस कन्इ चंहुचान, जिसो अवतार बारिसुज ||
जुध वैर इम्म तुट्टै जुरिन, सिंघ तुट्टि लखि सिंघनिय । प्रथिराज कुँवर साहाय कज, दुरजोधन श्रवतार लिय ।।५१
जहाँ जहाँ राजन काज हुत्र, तहँ तहँ होइ समथ्य ।
मेर हथ्थ बह भरे, नरनाहीं नर नथ्थ ॥५२
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