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________________ प्रकरण - १०; अपहिलवाड़ा अजमेर युद्ध [ २०७० प्रताप आदि सातों भाई, सिंह के समान थे। उनके चेहरों पर राजपूती तेज विराजमान था। वे जैसे शक्तिशाली थे वैसे ही बुद्धिमान भी थे; अपनी शक्ति पर उन्हें गर्व था और उसी के बल पर वे गरजते हुए तूफानों से भी टक्कर लेते थे। जब उनका स्वामी शत्रु से मुठभेड़ करने की आज्ञा देता था तो वे उस पर इस प्रकार टूट पड़ते थे जैसे बिजली पृथ्वी को झुलसा देती है।' अग्नि के समान प्रचण्ड, राणाओं के स्वामी शक्तिशाली झाला राणा का वध करने वाले वही थे। सारङ्गदेव वीरों के लोक (सुरलोक) को चला गया और प्रताप उसका उत्तराधिकारी हुआ । उसके साथ में पाँच सौ योद्धा थे, जिनमें से प्रत्येक अपने आपको वीरानगो समझता था। उन्हों वीरों के साथ वे सब भाई अपने राजा की सेवा में सदा तत्पर रहते थे और गुर्जर धरा के सत्रह हजार ग्रामों के लिए कल्पवृक्ष के समान थे, वे परम स्वामिभक्त थे और अपने स्वामी के निमित्त पर्वतों के भी सिर झुकवा देते थे। आगे चल कर इस कथा में पहाड़ी और जंगली जातियों द्वारा गुजरात के मैदान पर हुए एक ऐसे भयानक अाक्रमण का वर्णन आता है कि उनसे युद्ध करने के लिए स्वयं बल्हरा को [सेना का नेतृत्व करना पड़ा। लुटेरों को तुरंत ही खदेड़ कर भगा दिया गया और वे अपने जंगली घरों में चले गए। राजा और अन्य सामन्त जंगल में शिकार खेल कर मन बहलाने लगे। परन्तु, उसी समय एक ऐसी दुर्घटना हो गई जिसका प्रांशिक रूप से ही वर्णन करके हम कथा का रस बिगाड़ना नहीं चाहते । यह घटना आत्मरक्षा के लिए राजा के प्रिय हाथी को मार देने के कारण हुई, जिससे रुष्ट हो कर राजा ने उनको [प्रताप आदि को] 'देशवाटी' अर्थात् देश छोड़ कर बाहर चले जाने का आदेश दिया। वे अजमेर चले गए और चौहान राजा ने अन्तर्जातीय सौहार्द प्रदर्शित करते हुए उनका स्वागत किया। ' उसने उनके हाथ में एक पट्टा सौंप दिया ' रासो में पाठ यों है-"हुकुम स्वामि छुट्टत सु इम, मनु तित्तर पर बाज ।" . झाला शाखा के मुखिया की परवी राण (1) है । इस जाति के नाम 'ज्वाला' का अर्थ है, __ 'पग्नि को लपट' । चन्द ने बार बार इस शब्द का प्रयोग किया है। 3 इन्द्र को स्वर्गपुरी का काल्पनिक वृक्ष जिसके स्वर्णफल लगते हैं। "अर्द्ध सहस दल बल अनेत, बहु ग्रब्ब वर अप्प ।। सतरि सहस धर गुज्जरनि, मधि प्रोपत जिमि कप्प ।" (समय १६, पद्य ७) यहां 'मोपत जिमि कप्प' का अर्थ 'हनुमान के समान शोभायमान थे, ऐसा किया गया है (रा. वि. विद्यापीठ सं.२०११); परन्तु, कल्पवृक्ष वाला अर्थ अधिक उपयुक्त लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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