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________________ २०६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा राजपूत रोलॅण्डो' पृथ्वीराज से लोहा लेने की कथाएँ चन्द कवि के महाकाव्य में अत्यन्त रोचक उपाख्यानों के रूप में वर्णित हैं। यदि इसी को पागलपन या भोलापन कहा जाय तो यह बहुत ऊँचे दर्जे का पागलपन था। कवि चन्द के काव्य में से प्रभूत मात्रा में उद्धरण देना यहां आवश्यक नहीं है, विशेषतः इसलिए भी कि किसी दिन इस काव्य का बहुत कुछ भाग जनता के सामने प्रस्तुत करने का मेरा विचार है; परन्तु, फिर भी यहाँ इतनी मात्रा में तो इसके अंश उद्धृत कर ही रहा हूँ कि जिससे इसका मूल्यांकन हो सके । यह सब इसलिए नहीं कि प्राचीन राजपूतों के रहन-सहन व रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालना अभीष्ट है वरन् इससे उस समय के इतिहास और विशेषतः प्रस्तुत विषय का भी बहुत कुछ स्पष्टीकरण हो जाता है । इस युद्ध के वर्णन से 'चौहान के शत्रु' के व्यक्तिगत गुणों का बखान करने का ही अवसर प्राप्त नहीं होता प्रत्युत उसके राज्य के विभिन्न अंगों, साधनों एवं बल्हरा के झण्डे के नीचे एकत्रित होने वाली विविध खाँपों और उनके मुखियाओं का भी परिचय प्राप्त हो जाता है। 'गुर्जर धरा में भोला भीम भुग्रंगर राज्य करता था जिसके पास असंख्य घोड़ों, हाथियों और रथों से युक्त सेना थी। उसको कृपाण का पानी समुद्र के जल के समान चमकदार और गहरा था। उसके काका सारंगदेव की बराबरी कौन कर सकता था ? वह आकृति में देवता के समान था और उसके पुत्र ' रोलॅण्डो पाठवीं शताब्दी में फ्रांस के प्रख्यात राजा शार्लमॅन का सामन्त एवं भतीजा था । वह बहुत नेक, वीर एवं स्वामिभक्त था। उसके पराक्रमपूर्ण कार्यों का वर्णन योरप की सुप्रसिद्ध पुस्तक 'सांग ऑफ रोलॅण्डो (Song,of Ronald) में हुआ है। स्पेन-विजय के लिए जब शालमॅन ने चढ़ाई की तब रोलॅण्डो उसके साथ था । वापस लौटते समय उन लोगों पर सरसनों ने अचानक आक्रमण कर दिया। इसी हमले में रोलॅण्डो को मृत्यु हुई (सन् ७०८ ई.) -N. S. E.; p. 1066 २ भुनंग, भुजङ्ग का अपभ्रंश-सर्प की उपमा। भोरा भीम भुअंग तपै गुज्जरधर आगर । है गै दल पायक्क बल तेजह सागर ।। काका सारंगदेव, देव जिम तास बडाइय । . तासु पुत्र परताप सिंध सम सत्त सु भाइय ।। परतापसिंघ अरसी प्रवर, गोकुलदास गोविन्द रज, हरसिंघ स्याम भगवान भर, कुलभ रेह मुख नीर सज ॥२ (राजस्थान विश्व विद्यापीठ संस्करण, (सं० २०११; समय १६; कन्ह पट्टी) ३ यहाँ 'पानी' शब्द उस अर्थ में प्रयुक्त हुअा है, जैसे हीरे का पानी (प्राब); इसी प्रकार यह लोहे के पानी के अर्थ में भी प्राता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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