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प्रकरण १०
अहिलवाड़ा का इतिहास (चालू); भीमदेव; उसका चरित्र; अपहिलवाड़ा और अजमेर में युद्ध का कारण; भीम और दिल्लीपति पृथ्वीराज का युद्ध; भीमदेव का धष पृथ्वीराज द्वारा गुजरात-विजय ; शिलालेख; मूलदेव ; वीसलदेव; भीमदेव ; अणहिलवाड़ा का वैभव, अर्जुनदेव ; सारङ्गदेव; कर्णदेव गला (विक्षिप्त); मुसलमानों का आक्रमण; बल्हरा सत्ता का प्रस्त; टाक जाति द्वारा गुजरात-प्राप्ति और राजधानी का परिवर्तन, अपहिलधाड़ा के नाम का पाटण में पर्यवसान; इन ऐतिहासिक अभिलेखों का मूल्य ; परिणामों का सिंहावलोकन।
भीमदेव संवत् ११६६ ई.' में गद्दी पर बैठा । समसामयिक इतिवृत्तों में उसके नाम से पूर्व 'भोला' पद का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ सीधा, मूर्ख या पागल होता है । राजपूत इतिहासकार एक ही नाम वाले राजामों में भेद बताने के लिए गणनात्मक अंकों का प्रयोग न करके किसी विशिष्ट पद अथवा उपसर्ग का ही सहारा लिया करते हैं । भीमदेव के विषय में जो कुछ वृत्तान्त ज्ञात है वह हमें चौहानों के इतिहास से ही प्राप्त हुआ है। यदि वह 'भोला' था तो बल्हरा वंश की राजगद्दी पर बैठने वाले राजामों में क्रमेण वह तीसरा पागल राजा था। यह एक ऐसी बात थी, जो इस शक्तिशाली साम्राज्य को पंदे विठा देने के लिए मुख्य और पर्याप्त कारण थी; फिर, भले ही इन राजाओं के सभी पूर्वज सुलेमान के समान ही बुद्धिमान क्यों न हुए हों। ऐसा भी हो सकता है कि लिपिकार ने 'बल' या 'बाल' का ही 'भोला' लिख दिया हो क्योंकि चन्द [बरदाई) ने उसे 'बाल का राय, चालुक्य वोर' लिखा है; कवि ने यदि वास्तव में उसका ऐसा चित्रण किया है तो यह विशेषण एक स्वाभिमानी और उद्धत राजपूत के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
ऐसा प्रतीत होता है कि भीम ने अपने पूर्ववर्ती राजाओं के दोषों को जल्दी ही भुला दिया और एक वीर योद्धा के रूप में अपने आपको सिद्धराज का राजदण्ड ग्रहण करने के लिए सब प्रकार से योग्य प्रमाणित किया। शाकम्भरी के चौहान राजा सोमेश्वर से युद्ध करके उसका वध करने और अन्त में उसके पुत्र
१ ११७६ ई०-रासमाला, भाग १, रालिन्सन, १९२०; पृ. २०० ।
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