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________________ प्रकरण- अजयपाल . [२०३ . इस इतिवृत्त को पुष्पिका इस प्रकार है, 'इस प्रकार 'चरित्र' का गुजराती भाषान्तर, जो संवत् १४६२ (१४३६ ई०) में किया गया है, समाप्त. हुआ और उसकी यह प्रति अकबर के राज्य में लिखी गई । सालिग सूरि प्राचार्यकृत मूल इतिहास संस्कृत में अड़तीस हजार श्लोकों में है और यह गुजराती भाषान्तर तेरह हजार श्लोकात्मक है।'' ' संवत् १४९२ में हुए तेरह हजार श्लोकात्मक किसी गुजराती भाषान्तर का पता नहीं चलता है। वस्तुतः उपाध्याय जिन मण्डन गरिण ने कुमारपालप्रबन्ध की रचना १४६२ संवत् में की है, जिसकी पुष्पिका इस प्रकार है प्रबन्धो योजितः श्रीमत्कुमारनृपतेरयम् । गद्यपद्यनवः कश्चित्, कश्चित् प्राक्तननिर्मितः ॥ श्रीसोमसुन्दरगुरोः शिष्येण या श्रुतानुसारेण । श्रीजिनमण्डनगणिना, घ्यङ्कमनु (१४६२) प्रमितवत्सरे रुचिरः। इसी का अनुवाद विजयसेनसूरि के भक्त श्रावक ऋषभदास ने संवत् १.६७० (१६१३ ई०) में किया था, जो बादशाह अकबर से तुरन्त बाद का समय है। प्रशस्ति से पूर्व ग्रन्थकर्ता ने अपनी गुरु-परम्परा में हीरादजयसूरि का गुणगान किया है, जिसमें 'साहि अकबर' का नाम बार-बार पाया है। अकबर ने हीरविजय को प्रामन्त्रित करके एक विशाल ग्रन्थ-संग्रह भेंट किया था। सम्भवतः इसी कारण टॉड साहब को ऐसी भ्रान्ति हुई है ! संस्कृत में कुमारपाल सम्बन्धी अड़तीस हजार श्लोकों वाला कोई प्रबन्ध नहीं मिलता, न तेरह हज़ार श्लोक परिमाण का गुजराती अनुवाद ही उपलब्ध है। विशेष टिप्पणी-इस प्रकरण में कुछ नाम ऐसे पाए हैं जो तुरन्त ही स्पष्ट नहीं होते । इनके विषय में कुछ सूचनाएं बाद में मिली जो यहाँ दी जा रही हैं । इनसे इनको समझने में सुविधा रहेगी। Areake (एरियाके अथवा एरियाक)-यह महाराष्ट्र प्रदेश हो सकता है । यहाँ के निवासी मराठा या महाराष्ट्रों ने इसका यह नाम इसलिए रखा होगा कि वे मुख्यतः प्रार्य थे और उनके राजा भी भारतीय थे ! वे इस नाम 'मार्यक अथवा एरिमाके' के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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