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पश्चिमी भारत की यात्रा साथ-साथ उसका पुत्र भी था।' सोलंकियों के भाट की वंशावली में उसका नाम छोनीपाल लिखा है और समकालीन शिलालेखों में भी यही नाम मिलता है। उसी (जैसलमेर के) इतिहास में लिखा है कि "वह तीसरे राजवंश अर्थात बाघेलावंश का संस्थापक था।" यह भी लिखा है कि कुमारपाल को ज्योतिषियों ने पहले ही कह दिया था कि उसके मूलनक्षत्र में पुत्र उत्पन होगा, जो अपने पिता की मृत्यु का कारण होगा। इसीलिए उसको पैदा होते ही बाघेश्वरी माता के मन्दिर में चढ़ा दिया गया था। वहाँ पर माता ने सोलंकी बालक को नष्ट होने से बचाया ही नहीं वरन् बाघिनी के रूप में अपना स्तनपान भी कराया, जिससे उसके पुत्र का वंश देश में बाघेला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपने पिता के समान वह भी इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गया था और उसके शासन में सबसे पहला कार्य यह हुआ कि उसने अपने राज्य के सब मन्दिरों को, वे आस्तिकों के हों अथवा नास्तिकों के, जैनों के हों अथवा ब्राह्मणों के, नष्ट करवा दिया । किसी प्रकार तारिंगी ( Taringi ) की पहाड़ी पर एक मन्दिर बच गया, जो कूगर (Kugar) की लकड़ी का बना हुआ बताया जाता है । कहते हैं कि यह लकड़ी आग नहीं पकड़तो। अजयपाल अपने उत्कर्ष और पितघात, स्वधर्मत्याग तथा देवस्थान-भंजन के कार्यों के पश्चात् अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहा। क्रोधावेश में उसने हेमाचार्य के उत्तराधिकारी की आँखें निकलवा लीं और इसके बाद ही वह घोड़े पर से गिर पड़ा। वह पशु उसे मार्ग में घसीटता हुआ ले भागा और इसोसे उसकी मृत्यु हो गई । अबुलफज़ल ने लिखा है कि कुमारपाल ने तेवीस वर्ष राज्य किया और अजयपाल ने आठ वर्ष; परन्तु, 'चरित्र' में इन दोनों का राज्यकाल मिला कर तीस वर्ष लिखा है, जिसमें अजयपाल का समय दो वर्ष से भी कम बताया गया है।
' व्याश्रय के कर्ता का कहना है कि अजयपाल मृत राजा कुमारपाल के भाई महीपाल का
पुत्र था। • बाघेलखण्ड (Baghelcund) के राजा इसी वंश के हैं। गुजरात में इस जाति के और __भी छोटे-छोटे राज्य है जैसे, लूणावाड़ा, माण्डवी, माहीड़ा, गोध्रा, उभोई प्रादि ।। ३ कहते हैं कि यह मन्दिर नौ मंजिला है और अब तक विद्यमान है। ४ 'प्रबन्धचिन्तामणि' में लिखा है कि उसने सो प्रबन्धों के रचयिता रामचन्द्र नामक जैन
विद्वान् को तप्त ताम्रपट्ट पर बिठा कर मारा था। ५ एक दिन वयजल देव नाम के प्रतिहार ने उसके कलेजे में छुरी भोंक दी। प्र. चि. ४,
पृ. १५६ । 'चरित्र' में लिखा है, अकेले कुमारपाल ने तीस वर्ष राज्य किया ।
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