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________________ प्रकरण -83 अजयपाल [ २०१ इदरिसी में भी लिखा है कि जैन और बौद्ध मत प्रायः समान ही हैं; केवल एक को मान्यताओं का दूसरे में परिष्कार मात्र हुआ है । इस कथन पर सन्देह करने का कोई अवसर नहीं है। मैं अणहिलवाड़ा की इतिवृत्तीय रूपरेखा का वहाँ के धर्म, व्यापार एवं जहाजी-सम्बन्धों पर टिप्पणी करते हुए उपसंहार करना चाहता हूँ । अत: हम कुमारपाल सम्बन्धी वृत्तान्त को यही कह कर समाप्त कर देते हैं कि मुसलमान इतिहासकारों ने शाहबुद्दीन के विस्फोट के अतिरिक्त और किसी आक्रमण का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है, जो कुमारपाल और उसके गुरु हेमाचार्य के स्वधर्मत्याग की घटना के बीस वर्ष बाद हया था और जिससे हिन्दू सत्ता पर पतन की छाप लग गई थी। मेरे गुरु भी उन्हीं सुप्रसिद्ध जनाचार्य की आध्यात्मिक शिष्य-परम्परा में हैं और मेरे अणहिलवाड़ा-सम्बन्धी अनुसंधानों में भी मुझे इनसे बहुत सहायता मिली है। इन्होंने भी जनश्रुति के तथ्य को स्वीकार किया है, परन्तु धर्म-परिवर्तन की बात को जादू के प्रभाव से उत्पन्न पागलपन बताकर लीपापोती कर दी है । इससे हम यह परिणाम निकाल सकते हैं कि इन दोनों का धर्म-परिवर्तन बलपूर्वक किया गया था। अतएव हम कुमारपाल-विषयक वृत्तान्त को यह कह कर समाप्त करते हैं कि वह अपने समय का सबसे बड़ा राजा था और साथ ही उस धर्म का, जिसको त्याग कर उसने इस्लाम ग्रहण किया था, क्रमशः सबसे बड़ा सबल पोषक और तदनन्तर घोर विरोधी भी था। अजयपाल संवत् १२२२ अर्थात् ११६६ ई० में गद्दी पर बैठा ।' जैसलमेर के इतिहास में उसका उल्लेख इस प्रकार हुआ है कि संवत् १२१५ में धार के राजा यशोवर्मन के पुत्र रणधवल की बहन से विवाह के सम्बन्ध में वह जैसलमेर के राजकुमार का प्रतिद्वन्द्वी था। राजा भोज के महत्त्वपूर्ण समय का निर्धारण करने वाले शिलालेख से सोलंकी और भाटी वंशों के इतिहास की समकालीनता तुरन्त ही प्रमाणित हो जाती है। यह किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता कि अजयपाल कुमारपाल का उत्तराधिकारी होने के १ प्रबन्ध चिन्तामणि के कर्ता प्राचार्य मेरुतुंग ने लिखा है कि अजयपाल संवत् १२३० वि० (११७४) ई० में गद्दी पर बैठा । २ उसी इतिहास में लिखा है कि परमार के तीन पुत्रियां थीं और पाटण के अजयपाल के अतिरिक्त चित्तौड़ का युवराज भी वहां पर प्रतिस्पर्धी के रूप में उपस्थित था। भाटी के प्रति पक्षपात रखते हुए भी एक उपाख्यान में मेवाड़ के युवराज की श्रेष्ठता स्पष्ट स्वीकार की गई है । इस उपाख्यान में दोनों के झगड़े का वर्णन है, जो इस बात को लेकर खड़ा हुआ था कि भाटी ने मेवाड़ के राजकुमार के प्याले से पानी पी लिया था। इस इतिहास में कमसे कम चार समकालीन राजवंशों का वर्णन पाया है। ३ देखिए 'टॉन्जंक्शन्स् प्रॉफ दो रायल एशियाटिक सोसाइटी, जि० १, पृ० २२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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