SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०० ] पश्चिमी भारत की यात्रा क्योंकि वे स्वतन्त्रतापूर्वक दक्षिण में प्रवेश कर सकते थे और कल्याण तथा बम्बई से अपना अपना माल जहाजों में लाद सकते थे। आगे चल कर उसने लिखा है कि बरुगाजा (Barugaza)' ही एक ऐसा बन्दरगाह था जहाँ वे लारकेह अथवा लार के राजा सन्दनेश [स्यन्दनेश? ] (Sandanes) की आज्ञा से व्यापार करने के लिए रह सकते थे और उसकी आज्ञा का उल्लङ्घन करने वालों को पकड़ कर भडौंच भेज दिया जाता था । सम्भवतः यह स्थिति रूमी (Roman) दूतों के प्रबल प्रभाव से पैदा हुई थी जैसा कि विल्फोर्ड ने कहा है कि मिस्र-विजय करने के बाद उन्होंने भारतीय व्यापार (क्षेत्र) पर एकाधिपत्य जमा लिया था और अन्य देशीय व्यापारियों के लिए लाल-समुद्र (का मार्ग) बन्द कर दिया था। विल्फोर्ड का मानना है कि ग्रीक लोगों ने दक्षिण में अपनी विजय को सुगम बनाने के लिए सालसिट में जबरदस्ती एक बस्ती बसा लेने का प्रयत्न किया था जिसमें उनके बैक्ट्रिया (Bactria) वाले बन्धुओं का प्रभाव भी काम कर रहा था। जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि मेनान्दर (Menander) और प्रोपोलोडोटस (Appolodotus) सौरों के CUPOL राज्य में घुसते चले गए थे तो हमें विल्फोर्ड की कल्पना असङ्गत प्रतीत नहीं होती। उसने कल्याण से दक्षिण में बन्दरगाहों पर जहाजों की रोकथाम के विषय । में प्लिनी, एरिअन और टॉलॅमो के लेखों से प्रमाण उद्धृत किए हैं और यह बताया है कि ग्रीक लोगों के लिए वहाँ पर उतरना वजित था। अब, इन भिन्न-भिन्न प्रमाणों को जब हम एक करके देखते हैं तो बाद के जमाने में भी वही लोग हमारे सामने आते हैं और मुख्यतः स्थानीय जनश्रुतियां भी यही प्रमाणित करती हैं कि जहाजी विप्लवों के कारण ही देवबन्दर के सौर अथवा चावड़ा राजा को 'लारिक देश' से निकाला गया था। परन्तु, निकालने वाला कौन था ? मिस्री, ग्रीक और रोमन लोगों ने बारी-बारी से भारतीय व्यापार पर प्राधिपत्य जमा लिया था; परन्तु, इन सभी को नील (नदी) और लाल समुद्र से, जहाँ इस्लाम का विजय-ध्वज फहरा रहा था, सन् ७४६ ई० में वंशराज द्वारा अणहिलवाड़ा की पुनः स्थापना होने पर निकाल बाहर किया गया था। अतः यह दुर्घटना जल के अधिपति वरुण देवता द्वारा न होकर हारूँ के जहाजी बेड़े द्वारा हुई होगी। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि कुमारपाल बौद्ध धर्म का महान् रक्षक था। इसकी पुष्टि 'चरित्र' से भी होती है और अल , भडौंच। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy