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________________ प्रकरण - ६ ; प्रत्यकर्ता का अभिमत [ १९६ इन ताम्रपत्रों में भूमिदान का विवरण है, जो शक संवत ६३६ अथवा १०७४ विक्रमीय तदनुसार १०१८ ई० में हुआ था। साधारण रीत्यनुसार इनमें भी दाता की वंशपरम्परा का उल्लेख है। पांचवें पद्य में लिखा है कि कपदिन् 'सिलॉर वंश का प्रधान' था जिसका उल्लेख अणहिलवाड़ा के सम्राटों के अधोनस्थ छत्तीस जातियों में 'राजतिलक' विशेषण के साथ हुआ है। सम्भवतः यह सिलार 'लार' ही है, जिसके साथ सि अथवा सु उपसर्ग 'श्रेष्ठ' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और क्योंकि टॉलमी एवं एरिअन के समय में भी 'लारिस' और 'एरिआक' के पड़ोसी प्रान्त उसी सम्राट के अधीन थे इसलिये हमें इस व्याख्या को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है । अंतिम 'a' अनावश्यक है, जो अंग्रेजी सम्पादक ने रख दिया है। यह अक्षर बोला नहीं जाता और प्रायः व्यक्तिवाचक नामों के साथ लगाने पर भ्रम ही उत्पन्न करता है। पाठवें पद्य में कहा है कि बाद में उसका पौत्र गोगनी (Gogni)का स्वामी हुआ। सम्भवतः उसने खम्भात (Cambayet) के प्रसिद्ध नगर और बंदरगाह पर अधिकार कर लिया होगा, जिसका प्राचीन नाम गर्जनी (Garjni) अथवा गजनी (Gajni) था और जो लारिस और एरिपाक के मध्य में स्थित होता हुआ उन्हें आपस में सम्बद्ध करता था। सोलहवें पद्य में उपभोक्ता का नाम अरिकेसर आया है जिसका शब्दार्थ यद्यपि अरियों अर्थात् शत्रुओं के लिए केसरी या सिंह के समान होता है, परन्तु यदि इसे अपने देश परिया (Aria) का सिंह कहा जाय तो अधिक उपयुक्त होगा। उसका मूल नाम देवराज आगे के वाक्य में परिणत हुआ है अर्थात् 'अरिकेसर देवराज सिलार वंश का राजा तगर (Tagara) नगराधिपति समस्त कोंकण देश पर शासन करता है, जिसमें चौदह सौ ग्राम एवं नगरादि हैं' इत्यादि। इन्हीं में से एक मम्बई (बम्बई) से मिला हुआ तन्न (Tanna) [थाणा] भो था। एरिअन के पॅरिप्लस नामक ग्रन्थ में से उद्धरण देते हुए विल्फोर्ड ने लिखा है कि "तगर एक विशाल प्रान्त की राजधानी था, जो एरिपाक कहलाता था; इस प्रान्त में पोरङ्गाबाद और कोंकण आदि सूबे भी सम्मिलित थे।' (वास्तव में, (यहाँ) शिलालेख के शब्द ज्यों के त्यों दोहराए गए हैं), 'क्योंकि दमाऊ (दम्मन), कल्याण, सालसिट (Salsette) जिसम तन्न [थाणा] था और बम्बई आदि एरिअन और इब्न सईद के मतानुसार, लारिकेह (Larikeh) अथवा लार के राजा के अधिकार में थे।" यह वही निष्कर्ष है जिस पर मैं 'चरित्र' एवं अन्य स्थानीय प्रमाणों के आधार पर पहुंचा हूँ। विल्फोर्ड ने आगे भी एरिअन के उद्धरण दिए हैं । 'उसका (एरियन का) कहना है कि ग्रीक लोगों को कल्याण एवं अन्य बन्दरगाहों पर नहीं उतरने दिया जाता था।' ऐसा पहिले नहीं था, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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