SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण - है। 'मानविले के निष्कर्ष [१९७ जब इदरिसी यह कहता है कि यह भारतीय राज्यों में सब से बड़ी इसी राजधानी को नगर था तो चरित्रकार के इस कथन पर हमें तनिक भी सन्देह नहीं होता कि इस नगर का विस्तार पन्द्रह मील को परिधि में था और कुमारपाल को इस राज्य को बारह प्रान्तों में विभाजित करने को आवश्यकता प्रतीत हुई। इदरिसी ने इस राजा की शक्ति एवं प्रभाव के विषय में भी अपना मत देकर समर्थन किया है। उसने लिखा है कि "भारत के अन्य सभी राजा उसका सम्मान करते हैं।" इस विषय में हमारे पास ऐसे ही और भी सबल प्रमाण मौजूद हैं। उसके सैन्यविस्तार के समान ही हम उसके द्वारा अधिकृत प्रदारहों राज्यों के विषय में भी शंका को व्यक्त करते हुए अवश्य परीक्षण करते, परन्तु इस सम्बन्ध में ऐसे पुष्ट और निर्विवाद प्रमाण मौजूद हैं कि संदेह का कोई अवसर ही उपस्थित नहीं होता। इनमें सबसे सबल प्रमाण दो शिलालेखों का है (परि० सं० ३ व ४) जिनमें से एक चित्तौड़ के मन्दिर में सुरक्षित है और दूसरा पाटण नगर में। 'चरित्र' में वर्णित उसकी मेवाड़ विजय, पंजाब में सालपुर नगर और हिमालय की बाह्य श्रेणी विलक (Sewaluc) पर्वत तक प्राधिपत्य होने की बातों के अकाटय प्रमाण इन शिलालेखों से प्राप्त होते हैं। जालन्धर, उंछ और सिन्धु पर विजय प्राप्त करना तो इससे भी सरलतर बात थी। इस प्रकार अरब भूगोलशास्त्री अबुल फिदा के वर्णन की पुष्टि होती है, जिसका उद्धरण बेयर (Bayer) ने अपने चूडासमा ख्वाम (Chorasmia-Khwarzm) विवरण में दिया है।' 'चरित्र' के इन अंशों से लारिस (Larice) और एरिपाक (Ariaca) देशों से सम्बन्धित बहुत समय से चला आया विवाद भी स्पष्टतया शान्त हो जाता है। टॉलेमी ने इनको पड़ोसी देश लिखा है। उसके मतानुसार यह देश सायरास्ट्रीन (Syrastrene) (सौराष्ट्र ?) अथवा सौरों के प्रायद्वीप का एक मुख्य भाग था। 'चरित्र' में अणहिलवाड़ा के अधीनस्थ अट्ठारह राज्यों में लार देश का भी वर्णन आया है और यह भी उल्लेख है कि किसी अपराध के कारण कुमार. पाल ने 'लार जाति को देश से बाहर निकाल दिया था।' इब्न सईद ने इस देश की स्थिति के प्रश्न को यह कह कर हल किया है कि 'मैंने उन अधिकारी विद्वानों से भेंट को है, जो सोमनाथ के प्रसिद्ध मन्दिर की स्थिति लार देश में बताते हैं।" कुछ भी हो, इससे यह बात तो सिद्ध हो ही जाती है कि यह जाति "Terram Khanbalek ab Austro attingunt montes Belhar, qui est rex rex regum Indiae.' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy