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________________ १६६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा अब हम इस राजा के राज्यकाल के विषय में प्राप्त विभिन्न एवं विचित्र विवरणों को व्याख्या करेंगे और अन्य विश्वसनीय वृत्तान्तों के आधार पर 'चरित्र' में वर्णित तथ्यों को जांच भी करेंगे। इसी राजा के समय में प्रसिद्ध अरब भूगोल-वेत्ता अल-इदरिसी बल्हरा-राज्य में पाया था जिसके वर्णन से बेयर (Bayer) और द'अॉनविले ने बहुत-सी सूचनाएं प्राप्त की हैं। ऊपर दिए हुए उद्धरण के बाद ही द'पानविले लिखता है-"नहरूरा (Nahroora) का उल्लेख इदरिसी में आता है । निस्सन्देह, यह भारत में हैं जिसे हम गुजरात के नाम से जानते हैं । इस भूगोलवेत्ता के अनुसार भारत के सभी दूसरे राज्यों में इस नगर का प्रभुत्व रहा है । यहां के राजा का भारतवर्ष के अन्य सभी राजाओं से अधिक सम्मान होता था; उसे 'बलहरा' की पदवी प्राप्त थी जिसका अर्थ 'राय' अथवा 'सर्वश्रेष्ठ अधिपति' होता है। इस प्रसिद्ध राजा का निवासस्थान इसी नगर में था। टॉलेमी ने बालेकूरों के शाही नगर के रूप में 'हिप्पोकरा' (Hippocoura) नाम बताया है और वह इसको स्थिति 'लारिस' के समीप एक भारतीय प्रान्त में मानता है, जिसको अफ्रीका की संज्ञा देता है; मैं पहले ही इसको 'गुजरात' बता चुका हूँ। 'बालेकर' और 'बल्हरा' पदवी की समानता एवं प्रान्त की सुलभता को देखते हुए मुझे विश्वास है कि यह प्रसंगगत राजा से ही सम्बद्ध है।" इस सूक्ष्मदर्शी विद्वान् ने उपयुक्त वक्तव्य से यह समुचित निष्कर्ष निकाला है-“भारत में एक गौरवपूर्ण सुप्रसिद्ध राज्य है, जिसका हमें तीसरी (सम्भवतः दूसरी ?) शताब्दी के प्रारम्भ में ही पता चल जाता है और जिसका विवरण बारहवीं शताब्दी में अरब विद्वान् द्वारा लिखी गई पुस्तक में भी मिलता है।" यहां वह पन्द्रहवीं शताब्दी] भी जोड़ सकता था। निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सूचना के साथ वह अपना वक्तव्य समाप्त करता है-"इदरिसी हमें बताता है कि बल्हरा बुद्ध का भक्त था।" ___उपर्युक्त एवं अन्य सूचनाओं के आधार पर ही द'मानविले ने इस सुप्रसिद्ध नगर की स्थिति का पता लगाने का प्रयत्न किया है । "स्वयं पूर्वीय भूगोलशास्त्रियों के ही विवरण ऐसे हैं कि जिनसे बलहरा के राजकीय नगर की स्थिति का निश्चित रूप से पता लगना सुगम नहीं है । इब्न सईद ने तीन बार समुद्री मार्ग से खम्भात बन्दर की यात्रा को थी; उसके मतानुसार इसकी स्थिति मैदान में है।" न्यूबिग्रन (Nubian) भूगोल-शास्त्रो के इन स्पष्ट उद्धरणों से 'चरित्र' में वरिणत अणहिलवाड़ा के गौरव, यहां के राजाओं की शक्ति एवं उनके द्वारा प्रतिपालित धर्म-विषयक विवरण की भली भांति संपुष्टि हो जाती है। और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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