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________________ प्रकरण - e; कुमारपाल और हेमाचार्य का अन्त [ १६५ हीन ही हो सकता है, जिसके सिन्ध पर हमले और उमरकोट के राजा पर आक्रमण का हाल हिन्दू और मुसलमान दोनों ही इतिहासकारों ने लिखा है । परन्तु, यह जादू से पकड़ मंगवाने की बात समझ में नहीं आती; यह तो एक कल्पना मात्र है जिससे यह मालूम पड़ता है कि पट्टण पर अधिकार कर लिया गया था। इस कथा का अन्त तो और भी घटनापूर्ण है । उस मुसलमान के साथ मित्रता का फल यह हुआ कि कुमारपाल इसलाम के मूल तत्वों से प्रेम करने लगा और इस कार्य में हेमाचार्य ने पहल की। कहते हैं कि वह भी आचार्य की तरह इस्लाम धर्म में परिवर्तित होकर ही मरता यदि उसके राज्यकाल के तेतीसवें वर्ष में विष देने से उसकी मृत्यु न हो जाती । इस कृत्य का सन्देह उसके पुत्र तथा उत्तराधिकारी अजयपाल पर किया जाता है। इसका कारण यह बताते हैं कि जब राजा को यह मालूम हो गया कि उसे विष दिया गया है तो उसने अपने भण्डार में से सीप से बनी हुई विष-उतार की दवा मंगाई, जो अजयपाल ने इधर-उधर करदी। हेमाचार्य की मृत्यु एक वर्ष पहले ही हो चुकी थी। यद्यपि पागलपन का पर्दा डाल कर जैनमत के इस महान् प्राचार्य के स्वधर्म-त्याग की असाधारण घटना को छुपाने का प्रयत्न किया गया है परन्तु, कहते हैं कि मरते समय 'अल्लाह' 'अल्लाह' के अतिरिक्त उनके मुंह से और कोई शब्द नहीं निकले थे। परन्तु, उनके धर्म-परिवर्तन का अकाटय प्रमाण यह है कि मरने के बाद उनके अवशेषों को गाड़ा गया था।' इस सुप्रसिद्ध व्यक्ति का अन्त संवत् १२२१ में हुआ । उनका जन्म संवत् ११४५ में हुआ था । 'चरित्र' के शब्दों में ही हम इस राजा का चरित्र समाप्त करते हैं 'संवत् १२२२ (११६६ ई०)२ में कुमारपाल प्रेत हो गया। उसके उत्तराधिकारी अजयपाल द्वारा विष दिए जाने के कारण उसकी मृत्यु हुई।' ' जयसिंह सूरिकृत कुमारपाल चरित (सगं १०; पद्य २१५-२१७) में यह प्रमाणित किया गया है कि हेमाचार्य का अग्निदाह किया गया था। लिखा है कि चन्दन, मलयागरु और कपूर प्रादि उत्तम पदार्थों द्वारा सूरि के मृत शरीर का संस्कार किया गया। उसकी भस्म को पवित्र मान कर राजा ने सिलक लगाया और नमस्कार किया । यह देख कर सामन्तों एवं अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया। भस्म बीत जाने पर लोग वहां से मिट्टी भी खोदले गए जिससे एक घुटनों तक गहरा खड्डा बन गया। यह खड्डा पाटण में 'हेम खाडा' के नाम से प्रसिद्ध है। । संवत् प्रौर सन् लिखने में क० टॉड ने सर्वत्र भूल की है। यहां भी उनके आधारभूत कु० पा० चरित्र में कुमारपाल का मरण समय संवत् १२३० लिखा है "संवत् बारसें त्रीसई राय, कुमारपाल व्यंतर मां जाय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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