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पश्चिमी भारत की यात्रा अतः राठौड़ ने तुरन्त ही यह प्रार्थना स्वीकार कर ली यद्यपि हम जानते हैं कि इस प्रतिज्ञा का अधिक समय तक पालन करना उसके वश की बात नहीं थी। कुमारपाल के शत्रुओं ने भी उसकी इस सनक से लाभ उठाने में भूल नहीं की। सोलंकियों की वंशावली में भाट ने लिखा है कि रक्तपात को वर्जित करने वाले जैनमत के कारण ही पाटण राज्य का तख्ता उलट गया। 'चरित्र' में लिखा है कि "गजनी के खान ने उस पर आक्रमण किया परन्तु उसके ज्योतिषी [गुरु? ) ने उसे वर्षा ऋतु में युद्ध करने से मना कर दिया और मन्त्रबल से सोते हुए आक्रमणकारी खान को चालुक्य राजा के महल में मँगवा लिया जिससे खान में और उसमें पक्की मित्रता हो गई।"' जहाँ तक पदवी अथवा उपाधि से ही काम चल जाय वहाँ तक हिन्दू इतिहासकार प्रायः व्यक्तियों के नामों का उल्लेख नहीं करते; मुसलिम इतिहासों में इस राजा के राज्यकाल में गजनी से हुए किसी आक्रमण का विवरण नहीं मिलता। अतः इस आक्रमणकारी के विषय में इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता कि यह निर्वासित शाहजादा जलालु
' कुमारपाल रास में यह वृत्तान्त इस प्रकार लिखा है
"बात हवि परदेशि जसि, मुगल गिजनि पान्यो तसि । सबल सेन लेइ निज साथ, गज रथ घोड़ा बहु संघात । मौकस बाजी लेई करी, वाटई मुगल पाटण करी । पाव्या मुगल जाण्या जसि, दरवाजा लई भीड़या तसि चिन्तातुर हुवा जन लोक, पाटण मांहि रह्या सहि कोक । एक कहि नर खंडी जहि, एक कहि नर मंडी रहि । एक कहि काइ थाइसें, एक कहि ए भागि जासे । एक कहि ए निसंतराय, एक कहि नृप चढी जाय ।
एक कहि नप नासि प्राज, एक कहि क्षत्री नी लाज । मुसलमानी सेना से डर कर लोग उदयन मंत्री के पास गए। उसने उनको धीरज बंधाया और वह स्वयं हेमाचार्य के पास गया तब उसने चक्रेश्वरी देवी का प्राव्हान किया।
"गुरु वचन देवी सज थई, निश भरी मुगल दल मां गई। भावी जहाँ सूतो सुलतान, निद्रा देई कोषू विज्ञान । प्रहि उगमती जागे जसि, पसि कोई न देखी तसि ।
पेखई क्षत्रीनो परिवार, असर तब हइडि करि विचार ।" ऐसा होने पर खान को बहुत पश्चात्ताप हुमा, परन्तु कुमारपाल ने कहा 'मैं चालुक्यवंशी राजा हूँ, बन्धन में पड़े हुए को मारने वाला नहीं है, अतः तुम्हें भी नहीं मारूगा।' ऐसा कह कर राजा ने उसका सत्कार किया जिससे खान बहुत प्रसन्न हुमा और कुमारपाल के साथ मैत्री करके डापना लश्कर वापस ले गया।' (रासमाला गुज., अनु., पृ. २६०.६१)
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