________________
प्रकरण - 25 कुमारपाल
[ १८७ वही उनका राजा अभिषिक्त होगा। जब उस हाथी ने वह घड़ा एक योगी पर उँडेल दिया तो सबके आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वही योगी तुरन्त 'मार्गशीर्ष कृष्णा ४ सम्वत ११८६' को राजगद्दी पर बिठाया गया।' यह योगी छद्मवेष में कुमारपाल ही था। जब सिद्धराज का सम्बन्धी गद्दी पर बैठाया गया तो सभी एकत्रित सरदारों ने उससे पूछा-'जयसिंह द्वारा छोड़े हुए अट्ठारह प्रान्तों पर पाप कैसे शासन करेंगे ? तब उसने उत्तर दिया 'पाप लोगों के परामर्श और शिक्षा के अनुसार ।' परन्तु, जब कुमारपाल सिंहासन पर बैठा तो उससे भी यही प्रश्न किया गया, तब वह तुरन्त उठ कर खड़ा हो गया और उसने अपनी तलवार हाथ में उठा ली। सभा भवन जयजयकार से गूंज उठा और सब को विश्वास हो गया कि वही सिद्धराज का योग्य उत्तराधिकारी था। इसके आगे राज्याभिषेक का विवरण है, जिसको यहाँ पर उद्धृत करना अनावश्यक होगा; कुमारपाल के भ्रमण एवं राज्याभिषेक-विषयक वर्णन से ही 'चरित्र' के अड़तीस हजार श्लोकों का अधिकांश भरा पड़ा है।
इस राजा का विशेष विवरण लिखने से पूर्व हम उसके पूर्ववर्ती राजा (सिद्धराज जयसिंह) से सम्बन्धित कुछ उन घटनाओं का वर्णन करेंगे जिनके कारण उसका समय इतिहास में इतनी प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ और उसके नाम एवं पराक्रम का उस समय के राजपूताना की प्रत्येक रियासत के ऐतिहासिक काव्यों में वर्णन हुअा।
चन्द वरदाई ने कन्नौज के राजा के विरुद्ध उसके उन युद्धों का सूचन किया है जब कि 'उसने अपनी तलवार को गङ्गा में प्रक्षालित किया था। उसने उसकी सार्वभौम विजय को रोकने के निमित्त मेवाड़ और अजमेर के राजानों में हुई सन्धि का भी उल्लेख किया है। इन घटनाओं से सम्बन्धित अभिलेख ताड़पत्रों से भी अधिक टिकाऊ शिलालेखों पर अंकित हैं, जो अब उन नगरों के खंडहरों में पाए जाते हैं जिनके नाम भी लुप्त हो चुके हैं। उसने
पूरी तरह ऐसी ही चालाकी का प्रयोग किया था यद्यपि उसमें वैसी सफलता प्राप्त नहीं हई। उसने अपने गधे को दाने (अनाज) का बोरा लादे हुए घोड़े की पंछ से बाँध कर शिक्षित किया और वह अनाज निश्चित विजयस्थान पर पहुँचते हो उसे खिला दिया जाता था। घुड़दौड़ के दिन वह अभ्यास काम कर गया। दाना मिलने के लोभ में गधा दौड़ा और उसके स्वामी को पुरस्कार प्राप्त हुआ। 'संवत् ११९६ रा मंगसर वद ४ पुख नखत्र सूरज धार जद अहलपुर पाटण सोळ की कुमारपाल सिधराव सिंघ री गादो पाई ।'-बाँकीदास री ख्यात, १५५२, (५० १३३ रा.प्रा.वि.प्र. से प्रकाशित संस्करण, सं. २०१३ वि०) राज्य-वंशावली में लिखा है कि कुमारपाल मार्गशीर्ष शुक्ला ११ संवत् ११९६ वि. को गद्दी पर बैठा । (देखिए-रासमाला गुजराती अनुवाद, टिप्पणी, पृ. २३९)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org