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पश्चिमी भारत की यात्रा अर्णोराज को पुत्री से विवाह किया, जो चित्तौड़ के स्वामी के अधीन सात सौ ग्रामों का अधिपति था। यह सामन्त मेवाड़ की पूर्वीय सीमा के पठार पर था
और उसकी राजधानी मीनल [मेनाल ?] (अन्यत्र वर्णित)' थी, जिसके खंड. हरों में मुझे इस सम्बन्ध को प्रमाणित करने वाला शिलालेख मिला है। चन्द्रावती के परमारों से सम्बन्धित एक अन्य महत्वपूर्ण शिलालेख से विदित होता है कि अर्णोराज कुमारपाल का भी समकालीन था। इसमें लिखा है कि 'कुमारपाल और अर्णोदेव के बीच युद्ध हुआ, जिसमें लक्षणपाल ने रणक्षेत्र में अमरत्व फल प्राप्त किया ।' ___ 'चरित्र' के संस्कृत संस्करण में लिखा है कि सिद्धराज ने धार के परमार राजाओं से युद्ध किया। उन्होंने कितने ही वर्षों तक सामना किया परन्तु अन्त में उसने धार पर अधिकार कर लिया और वहाँ के राजा नीरवर्मा [नरवर्मा] को पकड़ लिया। इस उदयादित्य के पुत्र के समय का कितने ही तत्कालीन शिलालेखों एवं हस्तलिखित ग्रन्थों के आधार पर में निर्णय कर चूका है और यहाँ पर जिज्ञासु पाठकों के लिए इतना ही कहूँगा कि 'चरित्र' का यह उल्लेख मेरे उस निर्णय का पुष्टि में एक और महत्वपूर्ण समकालिक तिथि-प्रमाण के रूप में उपस्थित हुआ है। सुप्रसिद्ध जगदेव परमार, जिसका जीवन-चरित्र एवं पराक्रम एक छोटी पुस्तिका में वर्णित है, बारह वर्ष तक सिद्धराज की नौकरी में पाटण रहा था। उदयादित्य के पुत्र यशोवर्मा के दो पुत्र थे, बाघेली राणी का रणधवल और पाटण को सोलंकिनी का जगदेव । बड़ा पुत्र धार का राजा हुआ
और उसकी मृत्यु के बाद सिद्धराज की सहायता से जगदेव उसका उत्तराधिकारी हुग्रा ।
इसी जगदेव की वात में यह भी लिखा है कि सिद्धराज ने कच्छ के फूलजी जाडेचा की पुत्री से विवाह किया था, जो वातों में लाखा फूलाणी के नाम से प्रसिद्ध है। विक्रम की बारहवीं शताब्दी के अन्त में वह जंगल का राजा' बना हुआ था और उसके पराक्रमपूर्ण 'धाडों के कारण उसका नाम पड़ोसी राज्यों के इतिहासों में भी प्रसिद्ध है ।
। देखिए राजस्थान का इतिहास', जि० २, ५० ७४६ । दूसरा शिलालेख मीनल (Mynal)
के खण्डहरों में प्राप्त हुआ है, जो 'वलभी के द्वार' पर मेवाड़ के राजाओं की महत्ता का प्रमाण उपस्थित करता है, जो पहले बल्हरा ही थे। • देखिए, रा. ए सोसाइटि जर्नल, जि० १, प० २०७। ३ लाखा फूलाणी तो मूलराज का समकालीन था जिसका समय ८८० ई० से १७९ ई. तक
का माना गया है।
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