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________________ प्रकरण - ६; कुमारपाल [१८५ लगा लिया तब वह योगी के वेश में भड़ौच जा पहुँचा । खम्भात के एक बनिए ने, जो पक्षियों की बोली समझता था, इस पलायन में उसका साथ दिया। ज्योंही वे नगर में पहुँचे एक मन्दिर के कलश पर बैठे हुए दैवी शकुन-पक्षी ने दो स्पष्ट वाणी उच्चारित की जिनका बनिये ने यह अर्थ लगाया कि हिन्दू और तुर्क दोनों राज्यों पर उसका अधिकार होगा। एक बार फिर उसके आश्रयस्थान का पता चल गया और वह कुलू नगर को भाग गया। यहाँ पर एक प्रसिद्ध योगी ने उसे मन्त्र-दीक्षा दी कि जिससे उसका भाग्य चमक उठे, परन्तु यह मन्त्र तभी सिद्ध हो सकता था जब किसी शव पर बैठ कर उसका जाप किया जाए। कुमारपाल ने योगी के आदेश का पालन किया और मन्त्र का ऐसा प्रभाव हुया कि मृतक-शरीर बोल उठा और उसने यह भविष्यवाणी की कि पाँच वर्ष में वह गुजरात का राजा हो जाएगा। वहां से योगी के वेश में ही वह कल्याण कारिका' देश में कान्तिपुर गया और फिर वहाँ से उज्जैन जाकर प्रसिद्ध कालिकादेवी के मन्दिर में शरण ली, जहाँ एक सर्प ने उसे 'गुजरात का स्वामी' कह कर सम्बोधित किया। फिर, उसने चित्तौड़ की यात्रा की। वहाँ के सभी मन्दिरों के दर्शन और विवरण के अनन्तर मध्यभारत की इस प्राचीन राजधानी की स्थापना और इसके चित्राङ्गगढ़ नाम के विषय में एक लम्बी व्याख्या की गई है। वहाँ से वह कन्नौज, बनारस अथवा काशी, राजगढ और सम्पू (Sampoo) आदि स्थानों में घूमता रहा, जो सभी बौद्धधर्म के इतिहास में प्रसिद्ध हैं। इनमें से अन्तिम नगर में, जो चीन के राज्य में है, उसने जगडू नामक एक धनवान सेठ का वर्णन किया है, जिसने संवत् ११७२ के अकाल में उस देश के राजाओं की सेवा कई करोड़ रुपये देकर की थी। जिन लोगों ने इस सेठ की उदारता से लाभ उठाया उनमें से सिन्ध (Sinde) का हमीर भी था। कुमारपाल इसी १ अन्य के दूसरे भाग में इसको 'कल्याण कटक' लिखा है । कान्तिपुर का पता चलने से इसकी भौगोलिक स्थिति का प्रश्न हल हो सकता है। मूल में, यह कल्याणकारक देश', ऐसा पाठ है जिसका अर्थ मङ्गल करने वाला देश भी हो सकता है। २ अति प्राचीन काल से सुप्रसिद्ध यह मन्दिर अब भी विद्यमान है; 'कालिका' काल-मूति का स्त्रीलिङ्ग है। ३ स्थानीय पाख्यानों के अनुसार चित्राङ्गद मोरी चित्तौड़गढ़ का संस्थापक था। ४ इस साधारण सी बात का बहुत महत्त्व है क्योंकि इससे, इस राजा के राज्यकाल का समय निर्धारित होने पर, इस बात का पता चलता है कि प्राचीन पद्य के अनुसार मा का नाला कग्गर अथवा कर (Caggar or Kankar) इसके समय में सूख गया था। देखिए 'राजस्थान का इतिहास' जि० २, पृ० २६४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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