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________________ १८४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा ज्योतिषियों और भविष्य वक्ताओं को बुला कर उनको मनुष्य द्वारा सभी अभिलषित वस्तुएँ देना स्वीकार किया कि उसे किसी के भी प्रयत्न से पुत्र प्राप्ति हो जाय । परन्तु, जो बात परमात्मा को मञ्जुर न हो वह कोई भी पूरी नहीं कर सकता । एक साधु ने कहा 'दथली' [देवस्थली ] के सरदार का पुत्र तुम्हारा उत्तराधिकारी होगा, यही विधि का विधान है ।" इस पर राजा बहुत कुपित हुआ और एक सेना भेज कर दैथली पर आक्रमण कर दिया। वहाँ का चौहान सरदार मारा गया और उसका पुत्र कुमारपाल किसी तरह उस क़त्ले - ग्राम से बच कर निकल भागा। उसने अपने बहनोई कृष्णदेव के यहाँ, जो पाटण में रहता था, छुप कर प्राण बचाए । परन्तु वह उसका सम्बन्धी और जयसिंह का मन्त्री था इस कारण अधिक दिनों तक यहाँ भी छुपे रहने की कोई आशा न थी इसलिए वह एक कुम्हार के घर चला गया । कुछ समय वहाँ रहने के बाद वह पाटण में ही साधुओं और भिखारियों के साथ घूमता रहा । फिर वह किसी तरह अपने जन्म स्थान देथली भी जा पहुँचा । एक बार तो वह पकड़ा ही जाता परन्तु उसके एक कुम्हार मित्र ने उसे ईंटों की भट्टी में छुपा कर बचा लिया । अब उसने उज्जैन जा कर भाग्य- परीक्षा करने का विचार किया और चलताचलता खम्भात बन्दर जा पहुँचा । वहाँ थकान और भूख से व्याकुल हो कर एक पेड़ के नीचे सो रहा। उसी समय सुप्रसिद्ध हेमाचार्य अपने शिष्यों सहित पास ही के जंगल में जा रहे थे । उन्होंने उसे जगाया और यह देख कर कि कोई साधारण पुरुष नहीं है, उसे अपनी जैन युवक शिष्य मण्डली में सम्मिलित कर लिया | फिर आचार्य ने उसकी जन्म कुण्डली बनाई जिससे उसके भावीमहत्त्व का पता चला । परन्तु सिद्धराज के गुप्तचरों ने यहाँ भी उसका पता (शत्रु) के लिए सिंह और अजेय सिंह की पुत्री थी) पर बारह वर्ष का कुग्रह था । इस कुसमय में उसने बहुत दुःख पाया और इस अवधि को समुद्र में बिताने के लिए वह द्वारका को रवाना हुई। मार्ग में उसे एक सिद्ध अथवा दरवेश मिला जिसको उसने अपना मनसुबा बताया। उस सिद्ध के वरदान से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई जिसकी कृतज्ञ होकर उसने उस पुत्र का नाम सिद्धराज रखा । १ राजा कर्ण के सौतेले भाई क्षेमराज के पौत्र और देवप्रसाद के पुत्र त्रिभुवनपाल के तीन पुत्र और दो पुत्रियां थीं। पौत्रों के नाम महोपाल, कीर्तिपाल प्रोर कुमारपाल थे और पुत्रियाँ प्रेमल देवी तथा देवल देवी थीं। प्रेमल देवी का विवाह सिद्धराज के प्रधान सेनापति कान्हदेव के साथ हुआ था और देवल देवी का विवाह शाकम्भरी के राजा श्रान्न अथवा राज के साथ हुआ था । ( रासमाला प्रक० ११ ।) म यह ग्राम कर्ण ने अपने काका के पुत्र देवप्रसाद को जागीर में दिया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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