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प्रकरण • ६; सिद्धराज
[११ हैं कि जब कर्णाटक के सिंह' की पुत्री अणहिलवाड़ा पहुँची तब कर्ण उससे इतना अप्रसन्न हुआ कि उसने विवाह करना ही अस्वीकार कर दिया था, परन्तु अपनी माता के प्राग्रह का पालन करने एवं वधू को आत्मघात से बचाने के लिए ही, अन्त में उसने विवाह कर लिया। फिर भी कहते हैं कि, उसने कितने ही वर्षों तक उसके साथ सम्भोग नहीं किया; अन्त में, अपने सद्गुणों के अनवरत प्रकाश के द्वारा उसने केवल राजा को घृणा को ही अपसारित नहीं कर दिया वरन् उसके प्रेम और पादर को भी प्राप्त करके स्ववश में कर लिया । कर्ण ने उनतीस वर्ष तक राज्य किया और उसके बाद उसका पुत्र
सिद्धराज जयसिंह - संवत् ११४० (१०८४ ई०) गद्दी पर बैठा जिसके अर्द्धशताब्दी जितने राज्यकाल में प्रणहिलवाड़ा ने अभूतपूर्व गौरव प्राप्त किया। वंशपरम्परागत एवं विजय के द्वारा प्राप्त किए हुए पूरे अट्ठारह राज्यों पर उसका आधिपत्य था और इस प्रकार 'चरित्र' में उसके लिए जो "अपने समय के राजाओं में परम बलशाली" विशेषण प्रयुक्त हुआ है वह सर्वथा सही है । इन सभी राज्यों के नामों एवं समकालीन अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों का वर्णन इस राजा के उत्तराधिकारी के राज्य-वृत्त में किया जावेगा। अतः अब इतिहासकार के साथ साथ हम आगे चलते हैं और कुमारपाल के राज्य का वर्णन प्रारम्भ करते हैं जिसके निमित्त उक्त विवरण भूमिका के रूप में दिया गया है। यहाँ में इतिहासकार के वर्णन का ही अनुसरण करूँगा। _ "अट्ठारह राज्यों के विजेता महाबली सिद्धराज के कोई सन्तान नहीं थी इसलिए सम्पूर्ण शक्ति एवं सम्पत्ति उसके लिए व्यर्थ हो गई थी। उसने ब्राह्मणों,
, देखिए 'एशियाटिक रिसर्चेज वॉल्यूम १६' में इस राजा के विषय में टिप्पणी। मैकेजी.
संग्रह भी इस विषय में देखना चाहिए। Cesar (सीज़र) अथवा Kesar (केसर), जिसका अर्थ सिंह है, प्राचीन काल के राजपूतों को साधारण उपाधि है; सिंघ का अभिधान तो प्रायः सभी राजपूतों के नामों के साथ जुड़ा रहता है । यह अभियान जंगल के राजा के लिए इसी संस्कृत शब्द से निकला है अथवा फारसी शब्द कैसर से या रूसी ज़ार
से प्रथवा रोमन सीज़र से, यह विषय हम शब्द-शास्त्रियों के निर्णय के लिए छोड़ते हैं । । कहते हैं कि कर्णाटक के राजा की पुत्री मीनलदेवी कर्ण की प्राशा के विपरीत बहुत कुरूप
और प्राकर्षण-हीन निकली इसलिए उसने उसके साथ विवाह करना नहीं चाहा; परन्तु, वह
राजपुत्री सद्गुणों का भण्डार थी, यह उसके भावी चरित्र से भली प्रकार सिद्ध होता है। 3 सिद्धराज का राज्यकाल १०६४ ई० से ११४३ ई. तक था।-रासमाला। ४ सिद्ध' नाम के विषय में एक विचित्र पाख्यान है । कहते हैं कि उसको माता जो शुद्ध
संस्कृत में परि केसरी और जन भाषा में गया-केसर (Gya-Kesar) अर्थात् परि
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