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________________ प्रकरण - कल्याण के सोलंकी [ १७७ एक शिलालेख, जिसका अनुवाद श्री कोलबुक ने किया है और जो एशियाटिक रिसर्चेज, वॉल्यूम ; पृ० ४३५ में सम्मिलित है तथा जिसका अभी तक कहीं उपयोग नहीं हुआ है, मेरी इन धारणाओं को पुष्ट करने और हस्तलिखित आधारों की सचाई को तौलने में बहुत सहायक सिद्ध हुआ; इस लेख के अनुसार इस राजवंश की स्थापना एक हजार वर्षों से भी पहले हो चुकी थी। यह शिलालेख चतुर्थ राजा सोमादित्य के समय का है, जिसमें उसका वंश चालुक्य और राजधानी कल्याण बताई गई है । लेख इस प्रकार चलता है--"सोमेश्वर... पर सदा अनुग्रह करें "इत्यादि-इत्यादि, राजकुल में विशिष्ट, चालुक्यवंशभूषण" इत्यादि, जो कल्याण नगर में राज्य करता है, इत्यादि।' यदि और कोई प्रमाण न भी मिले होते और केवल यही एक लेख होता तो अन्य सभी लेखों के संग्रह का महत्त्व प्रमाणित हो जाता क्योंकि उन सब में से यही एक ऐसा [प्रबल] है जिसने मेरे अनुसन्धान में सफलता एवं उत्साह प्रदान किया है । प्राचीन समय में कल्याण व्यापारिक एवं राजनीतिक महत्त्व का नगर था।' एरिअन ने परीप्लस में इसका कई बार उल्लेख किया है जिससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि दूसरी शताब्दी में यह बालेकूरों Balckoura s) अथवा बल्हरों की सार्वभौम सत्ता के अधीन करद राज्य रहा था और इसके विस्तार की पुष्टि प्रोम (Orme) द्वारा उसके 'बिखरे खण्डों' (Fragments) नामक पुस्तक में इसके खण्डहरों के वर्णन से हो जाती है। तत्त्व-संबंधी बहुमूल्य सामग्री का संग्रह किया, जिसको बाद में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने १०,००० पौंड में खरीद लिया। सूची-पत्र, एच० एच० विल्सन, १८२८ ई० ।। • यह बताने की प्रावश्यकता नहीं है कि सोमेश्वर और सोमादित्य का अर्थ एक ही है प्रर्थात चन्द्र (सोम) का प्रादित्य अथवा स्वामी । २ याज्ञवल्क्य स्मृति की मिताक्षरा टीका के कर्ता विज्ञानेश्वर ने भी अन्त में लिखा है 'नासीदस्ति भविष्यति क्षितितले कल्याणकल्पं पुरम्' ३ रॉबंट प्रोम का जन्म १७२८ ई० मे त्रावणकोर के एन्जेन्गो नामक स्थान में हुआ था। वह १७७४ ई० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में प्रविष्ट हुप्रा और लार्ड क्लाइव के घनिष्ठ मित्रों में माना जाता था। बाद में, वह कम्पनी का इतिहासकार भी नियुक्त हुआ। उसकी दो पुस्तके प्रसिद्ध हैं, जिनमें से यहाँ अपर पुस्तक से तात्पर्य है1 History of Military Transactions of the British Nation in Indostan from 1745. 2 Historical Fragments of the Mogul Empire from the year 1659. प्रोम ने बहुत सी हस्तलिखित और प्राच्यविद्या-विषयक सामग्री कम्पनी को भेट । कर दी थी। उसका देहान्त १८०१ ई. में हुमा ।-E.B. Vol.XVII, pp. 853-54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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