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अनुवादक का प्रावेदन
[ ७ कलाओं से सम्बन्धित अथवा उपाधि श्रादि के सूचक हैं। इनमें से कुछ देशी शब्द मूल लेखक ने भी उनके प्रति प्राकृष्ट होकर ज्यों के त्यों प्रयुक्त किये हैं. जो उनकी भाषा को अधिक आकर्षक बनाने में सफल हुए हैं । अनुवाद में भी कुछ प्रान्तीय एवं प्रसंगोपात्त पारिभाषिक शब्द आगये हैं, ऐसे ही कुछ शब्दों को अनुक्रमणिका ( ४ ) में एकत्रित किये हैं । अनुक्रमणिका ( ५ ) में उन ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के नाम दिये गये हैं जिनके कर्नल टॉड ने अपने ग्रन्थ में उद्धरण दिये हैं या उनकी ओर संकेत किये हैं । टिप्पणियों में जिन ग्रन्थों से सहायता ली गई है अथवा जिनका संकेत किया गया है उनकी तालिका अनुक्रमणिका (६) के रूप में दो गई है ।
कर्नल टॉड ने अपना यह ग्रन्थ श्रीमती कर्नल हन्टर ब्लेयर को यह कहते हुए समर्पित किया है कि वे आबू के रमणीय स्थलों के रेखाचित्र बनाकर प्राबू को इंग्लेण्ड ले गई । मूल - पुस्तक से उन रेखाचित्रों की फोटो प्रतिकृतियां तैयार करवाकर प्रस्तुत पुस्तक में पुनः प्रकाशित की गई हैं कि जिससे पाठक यह जान सकें कि श्रीमती हन्टर ब्लेयर श्राबू का कौनसा रूप इंग्लेंड में ले गई थीं । इनके अतिरिक्त कर्नल टॉड के एक सुप्रसिद्ध स्वाभाविक चित्र तथा राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के संग्रह में सुरक्षित 'फिरंगी टॉड' शीर्षक काल्पनिक चित्र की प्रतिकृतियां भी पुस्तक में लगाई गई हैं ।
अनुवाद कैसा हुआ है, इसमें कितनी और कैसी कमियां रह गई हैं तथा इसमें दी हुई टिप्पणियाँ कितनी उपयोगी हैं और वे कहाँ तक शोधविद्वानों के लिये सहायक हो सकेंगी, इत्यादि विषयों में कुछ भी कहने का मैं अपना अधिकार नहीं समझता हूँ । कर्त्तव्यरूपेण मैंने यह परिश्रम किया और इससे अध्येतानों, संशोधकों और सामान्य पाठकों को किंचित् भी सहायता मिल सकी या उनका अनुरंजन हो सका तो मैं अपने श्रम को सफल समगा ।
प्राचीन भारतीय वाङ्मय-समुद्भरणैकव्रती सुकृती मनीषी पद्मश्री मुनि जिनविजयजी महाराज को में श्रद्धा सहित धन्यवाद अर्पित करता हूँ कि जिनके दिग्दर्शन में यह कार्य मेरे द्वारा हो सका और जिनकी कृपा से यह मुद्रित होकर पाठकों के सामने आ सका । मेरे सम्माननीय मित्र मध्यप्रदेश और राजस्थान के इतिहास के विशेषज्ञ डॉ. रघुवीरसिंहजी, महाराजकुमार, सीतामऊ ( मालवा ) ने अन्यान्य अधिक महत्वपूर्ण कार्यों में व्याप्त रहते हुये भी अपने बहुमूल्य समय में से इस पुस्तक के लिये सारगर्भित प्रस्तावना लिखने के लिये अवकाश निकाला, इसके लिये मैं उनका हृदय से आभारी हूँ । समादरणीय डॉ० परमात्मा
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