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पश्चिमी भारत की यात्रा
"ऐसी स्थिति में तो हम उस दम्भपूर्ण मिथ्याभिमान के प्रति दया भाव ही प्रदर्शित कर सकते हैं, जिसने इस विचार को प्रेरणा दी है कि हिन्दुनों के पास कोई ऐतिहासिक लेख सामग्री नहीं है और जिसके द्वारा इस प्रकार के अन्वेषणों को व्यर्थ का प्रयास घोषित करके जिज्ञासा की भावना को दबा देने का प्रयत्न मात्र किया गया है । ( पृ० २४८ )
इसी प्रकार के अन्यान्य तथ्यों का उद्घाटन और श्रमान्य पूर्वाग्रहों का निराकरण कर्नल ट्रॉड ने अपने इस यात्रा विवरण में किये हैं। उनकी भारतीय विषयों के अनुसंधान थोर उसके विवेचन में जो रुचि थी एवं जिस लगन से वे कार्य करते थे तथा करना चाहते थे उसके विषय में लिखा है
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"यदि स्वास्थ्य और पर्याप्त अवकाश मुझे मिलता तो जो कुछ मैंने किया है उससे दसगुना काम और करता और यदि विशेष सुविधाएँ मिलीं होतीं तो उस दसगुने का भी दसगुना कर दिखाता - मेरे इस कथन पर विश्वास कर लेना चाहिये।" ( पृ० २५६ )
परिशिष्ट में कर्नल टॉड ने जिन शिलालेखों के अनुवाद दिये हैं उनमें से बहुत से तो इण्डियन एन्टिक्वेरी, एशियाटिक रिसर्चेज, हिस्टोरीकल इन्सक्रिप्सन्स् ऑफ गुजरात, वीरविनोद आदि ग्रन्थों में मुद्रित रूप में प्राप्त हो गये हैं । कुछ शिलालेख जो वे अपने साथ इंग्लेण्ड ले गये थे या उन्होंने रॉयल एशियाटिक सोसायटी में जमा करा दिये थे उनमें से कतिपय उपलब्ध नहीं हुए हैं, ऐसा मूल संस्करण के प्रकाशक ने भी लिखा है। जिन शिलालेखों के मूल पाठ प्राप्त हो सके हैं वे परिशिष्ट में कर्नल टॉड कृत अनुवाद के हिन्दी-रूपान्तर के नीचे पुनर्मुद्रित हुए हैं । जहाँ अग्रेजी अनुवाद और मूल पाठ में वास्तविक अन्तर दिखाई दिया वहाँ श्रावश्यक टिप्पणी दे दी गई है। इससे विज्ञ पाठकों को मूलपाठ देखकर तथ्य समझने में तत्काल सुविधा हो सकेगी ।
पुस्तक में राजस्थान, गुजरात, काठियावाड़, बम्बई के कितने ही गांवों कस्बों, नगरों और ऐतिहासिक पुरुषों अथवा लोककथा के पात्रों, तथा जेम्स टॉड के परिकर में काम करने वाले सैनिकों और मल्लाहों शादि के नाम सैकड़ों की तादाद में आये हैं । ऐसे स्थानों और व्यक्तियों के नाम, अन्य संदर्भित यूरोपीय स्थानों और व्यक्तियों की नामावली सहित अनुक्रमणिका ( १,२ ) में दे दिये गये हैं । इसी प्रकार भारतीय, मध्य एशियाई और यूरोपीय कितनी ही जातियों के नाम भी इस पुस्तक में आये हैं, जो अनुक्रमणिका (३) में संकलित हैं। पुस्तक में कुछ ऐसे शब्द हैं जो लोकप्रचलित एवं वास्तु श्रादि
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