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________________ प्रकरण - ; चालुक्य को उत्पति [ १७३ जा रही है इसलिए हम उसे सभी राजवंशों के काल्पनिक उद्गम से प्रारम्भ करने की छूट दे देते हैं । उसे अपने वर्णनीय रानात्रों का जन्म आबू के अग्निकुण्ड से होना स्वीकार नहीं है । वह कहता है "जब ब्रह्मा ने सष्टि का कार्य समाप्त कर लिया तो वह पवित्र नदी गङ्गा के सोरों घाट पर संध्या-वंदन करने के लिए आया और पवित्र दूब [दर्भ की बाल अंजलि में लेकर उसने चुलुक बनाया तथा संजीवन मंत्र का उच्चारण किया । उसी समय एक मर्त्य मानव उत्पन्न हुआ जो ब्रह्म-चौलुक्य' कहलाया। स्थान के कारण वही सोलंकी भी इतिहास ऐसी ही घटनाओं से भरा पड़ा है। इसी प्रकार अजमेर के माणिकराय का लोटपुत्र' (Lotputra), जो मुसलमानों के पहले हमले में मारा गया था, चौहानों का कुलदेवता माना जाता है । यहां 'पुत्र' का अर्थ है 'किशोर' अथवा वह जिसने अभी यौवन प्राप्त नहीं किया है। महाभारत के अनुसार द्रुपदराज पर कुपित होकर अपमान का बदला लेने के लिए द्रोणाचार्य ने चुलुक में जल भर कर संकल्प किया और चौलुक्य वीर उत्पन्न किया। कलचुरी वंशीय युवराजदेव (द्वि.) का लेख-एपि. इण्डिया भा. १, पृ. ५७ चालुक्य वंश के लिए लेखों और दान-पत्रों में 'चौलुकिक', 'चौलिक', 'चालुकिक', चुलुक्य' और 'चौलुक्य' नामों के प्रयोग मिलते हैं--देखिए, गुजरात नों मध्यकालीन राजपूत इतिहास, भा. १-२, पृ. १२८-१३० स्पष्ट है, 'च' का उच्चारण 'स' होने से सोलंकी शब्द प्रचलित हुआ। यहां स्थान के कारण 'सोलंकी' नाम पड़ने की बात समझ में नहीं आ रही है। राष्ट्रकूटवंशीय दन्तिदुर्ग के एक दानपत्र (जनल प्रॉफ दी बॉम्बे ब्राञ्च प्राफ दी रायल एशियाटिक सोसाइटी, वॉल्यूमे २) में लिखा है कि इन्द्र की रानी मातपक्ष में चन्द्रवंश से और पितृपक्ष में 'शालिक्य' वंश से सम्बद्ध थी-- 'राज्ञी सोमान्वयी तस्य पितृतश्च शालिक्यजा' इससे प्रतीत होता है कि 'शालिक्य' शब्द भी प्रचलित था जो 'सोलंकी' से अधिक निकट है |--History of Medieval Hindu India, C.V. Vaidya; p. 82 दक्षिण के चालुक्य राजा विमलादित्य के रणस्तिपुण्डी के दानपत्र (१०११ ई.) के अनुसार इस वंश के क्रम में ब्रह्मा, चन्द्र और अयोध्या के ५६ राजाओं का वर्णन है जिनमें उदयन भी सम्मिलित है । प्रागे कहा है कि इसी वंश का विजयादित्य राजा त्रिलोचन पल्हव से युद्ध करता हुआ मारा गया। उसकी गर्भवती विधवा रानी ने विष्णुभट्ट सोमयाजी के संरक्षण में रह कर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम विष्णुवर्धन रखा गया। उसने 'चालुक्य' पर्वत पर स्थित गौरी माता की आराधना करके पुनः दक्षिणापथ का राज्य प्राप्त किया, इसीलिए उसका वंश चालुक्य कहलाया । --The Early History of the Deccan, G. Yazdani; p. 206 • 'इतिहास' क क्स संस्करण, १९२०; भा. ३; पु० १४४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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