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प्रकरण
पहिलवाड़ा का इतिहास, चालू कल्याण के सोलंकी राजा; अणहिलवाड़ा के राजवंश में परिवर्तन ; समकालिक घटनाएँ; कल्याण का महत्त्व; मुसलमान लेखकों का भ्रम; प्रणहिलवाड़ा के राजाओं का क्रम (चालू); सिद्धराज, चालुक्यों की राजगद्दी पर चौहान राम का उत्तराधिकार; बलहरों के राज्यान्तर्गत प्रदेश कुमारपाल के कार्य; अणहिलवाड़ा के विस्तार और वैभव के संबंध में 'चरित्र' द्वारा सम्पुष्टि; लार (Lar) का देश; बौद्ध धर्म का समर्थक कुमारपाल ; उसके द्वारा स्वधर्म त्याग और इसलाम धर्म का प्रहण ; अजयपाल ।
अब हम बीच के राजाओं को छोड़ कर अरब यात्रियों के आगमन के समय जो राजा प्रणहिलवाड़ा में राज्य करते थे उनसे वंशराज के सीधे और अंतिम वंशज सामन्तराज के समय में आते हैं और कोंकण की राजधानी कल्याण के समकालीन शासकों की चर्चा आरम्भ करते हैं, जिन्होंने अणहिलवाड़ा में एक सौ छियासी वर्षों से राज्य करते आए चावड़ों को अपदस्थ कर दिया था। इस प्रयोजन के लिए हमें सोलंकियों की वंशावली के एक पृष्ठ का उपयोग करना पड़ेगा जो मुझे इस वंश के प्रतिनिधि, रूपनगर के शासक ने (जो अब मेवाड़ में जागीरदार है) दिया था। उसके घरू भाट के पास उनके मूल निकास, अणहिलवाड़ा की बातों की पोथी अब भी मौजूद है, जिसमें उनके पूर्वजों की परम्परा का वर्णन हैं ।' क्योंकि भाट की कहानी उसीकी जबानी कही
• हम उनका गोत्र उन्हीं की बोली में लिखते हैं। इसका अनुवाद साधारण पाठकों के तो
सन्तोष का विषय होगा नहीं; इसके गहरे जानकार तो कोई इक्के दुक्के ही होंगे, जो इस देहाती बोली में ही प्रानन्द ले सकेंगे।
"मदवाणी साखा* (Madwani Sacha), भारद्वाज गोत्र, गढ़लोकोत, खार निकास, सरस्वती नदी. सामवेद, कपलि मानदेव (Kupilman Déva), कदिमान ऋषेस्वर (Kurdiman Rikheswar), तीन प्रवर जनेऊ, सूरीपान का छत्तो (Su'ripa na-cach hatto), गऊपालूपास (Gaopaloopas), गयानिकास (Gya-nckas), केवञ्ज देवी (Kewanj Devi), नेपाल पुत्र (Maipal Putra)"
यह महीपाल, जिसको पुत्र कहा गया है, नारायणा (Nairanoh) के रणक्षेत्र में वीरता दिखाने के कारण सोलंकियों के पनेतों (Penates) में गोद लिया गया था। वह राजा बोरवेव का तीसरा पुत्र था, जिसको सांभर के चौहान राजा की पुत्री व्याही थी और जो अपनी ननसाल के विरुद्ध इसलामी झगड़े में मारा गया था। यहां के प्रत्येक वंश का
* माध्यन्दिनी शाखा ।
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