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पश्चिमी भारत की यात्रा प्रसिद्ध हुआ।' यहीं पर उन्होंने अपनी राजधानी बनाई जिसको सोरों' भी कहते हैं और इसीलिए यहाँ पर गङ्गा का नाम 'सोरोंभद्र' पड़ा है। त्रेता और द्वापर अथवा स्वर्ण एवं रजत युगों में उन्होंने यहाँ पर राज्य किया ।' पाठक स्वयं इस उद्धरण के तथ्य को आंक लें; भूगोल के विद्यार्थी को कम से कम इससे एक प्राचीन राजधानी के उद्गम का पता तो चल ही जाता है, जो दिल्ली के अन्तिम चौहान सम्राट के समय तक प्रसिद्ध रही और अब तक भो एक धार्मिक तीर्थ-स्थान मानी जाती है । इस शाखा के गोत्र से हमें यह भी पता चलता है कि इसका निकास उत्तरी भारत अर्थात् लोकोट से है, जो पांचालिका (पंजाब) का एक प्राचीन नगर था । वहाँ से निकलने पर इन लोगों ने गंगा-तट पर सोरों बसाया। इतिहास में लिखे इस काल्पनिक युग का विशेष विचार न करते हुए अब हम भाट द्वारा बताई हई पष्ठमि पर अपना मत स्थिर करेंगे। 'विक्रम की सातवीं शताब्दी में दो भाई राज और बीज गंगा' को छोड़ कर गुजरात में पाए। इनमें से पहले [राज] ने पाटन के चावड़ा राजा की पुत्री से विवाह किया, जिसको सन्तान आगे चल कर गद्दी पर बैठो और वंशराज से कर्ण तक अर्थात् सिकन्दर खूनी द्वारा निष्कासित होने तक पांच सौ बावन वर्ष राज्य करती रही। टोडा (Thoda) और रूपनगर के सोलंकियों के भाट से हमें इतनी ही सूचना मिलती है। अब हम फिर 'चरित्र' के आधार पर आते हैं।
'राजा बीरदेव चावड़ावंश का था जो कि कान्यकुब्ज । कन्नौज) का अधिपति राजा था । वह अपनी राजधानी कल्याण-कटक से गुजरात में आया, इस देश पर विजय प्राप्त करके उसने यहाँ के राजा का वध किया और फिर अपनी सेना
• मानव्य गोत्रीय क्षत्रिय और हारोत गोत्रीया ब्राह्मण कन्या के योग से यह 'ब्रह्मक्षत्र' भी कहलाये ।
---मेवाड़ के गोहिल ; स्व० मानशंकर पीताम्बरदास मेहता, पृ० ७६-८० १ कासगंज के पास नवी के सूखे पेटे का अब भी यही नाम है; पहले गंगा इधर ही से बहती
थी। मैं निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता कि यह प्राचीन नगर सोलंकियों का बसाया हमा है या नहीं। वीरदेव माणिकराय का समकालीन था, इससे एक और महत्वपूर्ण
समसामयिकता का पता चल जाता है । 3 भिन्नमाल के आसपास का प्रदेश गूजरत्रा या गुजरात कहलाता था। राज या राजि उसी
प्रदेश का एक सामन्त था । -लोरी देट वॉज गुर्जर देश; भा. ३; पृ० ७६
४ यहाँ 'अलाउद्दीन' के स्थान पर भूल से 'सिकन्दर' लिखा गया प्रतीत होता है । Jain Education International
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