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________________ १६८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा अब हम इस विवरण का विवेचन करेंगे। सबसे पहले, 'बल्हारा' पद लें; यह 'बल्ला का राय' ( Balla ca Rae ) ' से बना है, जिनकी प्राचीन राजधानी वलभीपुर थी, जिसके स्थिति-स्थल पर टोलॅमी (Ptolemy) ने एक बाइजॅण्टियम को ला कर रख दिया है । दूसरे, चांदी के तातारी' द्रम्म सिक्के, जिनमें से एक मेरे पास भी मौजूद है; इसके एक तरफ राजा की मूर्ति ठपी हुई है और पीछे की ओर एक घेरे [पीरिश्रम Pyreum] के चारों तरफ कुछ अस्पष्ट जैन अक्षर भरे हुऐ हैं; तीसरी बात, इन राजाओं के लम्बे-लम्बे राज्यकाल की है; ये यात्री तीसरे और चौथे राजा के समय में पट्टण आए थे और इनके द्वारा प्रयुक्त 'बहुत ' (many) शब्द हमें अवश्य ही भ्रम में डाल देता यदि इनकी अन्य बातें सही और समझ में आने योग्य पाई जातीं । परन्तु, यह सहज ही में अनुमान किया जा सकता है कि वे लोग गुजरात की बोली अच्छी तरह नहीं जानते थे इसलिए वंशराज के अर्द्धशताब्दी एवं उसके क्रमानुयायी के तीस वर्षों के लम्बे राज्यकाल के कारण उन्होंने इस शब्द का प्रयोग उचित मान लिया होगा; अथवा, जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, केवल देवपट्टण से राजधानी का परिवर्तन हुआ था इस - लिए इस घटना से पूर्व के राजाओं के राज्यकाल के कारण ऐसा लिखा गया होगा । सन्त इतिहासकार सालिग तो नहरवाला में वंशराज के राज्याभिषेक के बाद कभी गये ही नहीं । चौथे, इन यात्रियों के भूगोल - सम्बन्धी ज्ञान के विषय में अनुवादक ने लिखा है कि "इन सभी स्थानों की स्थिति ऐसी भ्रमपूर्ण है, कि ठीक-ठीक अनुमान भी नहीं लगा सकते ।" अस्तु, इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अनुवादक के अल्पज्ञान के कारण, जिसे उसने अपनी भूमिका में पूर्ववर्तियों पर थोपा है, यह पहले से अस्पष्ट विषय और भी अधिक दुर्बोध्य बन गया है, जिसे ' 'बलहरा' पद की व्युत्पत्ति कई प्रकार से की गई है; यथो, 'बल्ल (प्रदेश) का राय (राजा) ' 'बल्लभीराज, भट्टार्क भृतार्क और 'वल्लभराज' आदि । श्रन्तिम उपाधि मान्यखेट के राष्ट्रकूटों ने ग्रहण की थी । इस विषय की विशेष जानकारी के लिए Journal of the Royal Asiatic Society, Vol. xii, p. 7. देखना चाहिये । • एक प्राचीन नगर, जो श्याम समुद्र ( Black Sea ) और मारमारा समुद्र (Sea of Marmara) को मिलाने वाली भू-पट्टी पर स्थित था। कुस्तुन्तुनिया की नई राजधानी की कल्पना भी इसी के आधार पर की गई थी। — N. S. E., p. 216 3 अनुवादक ने हमें इनमें तातारी सिक्के का अनुमान न करने के लिए सचेत किया है। उसका कहना है कि ये देशी सिक्के हैं और वह दस शब्द को 'थ' से शुरू करता है । यहां अनुवादक से तात्पर्य Renedaut से है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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