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प्रकरण • ८; अणहिलवाड़ा के राजा
[ १६७ के राज्यकाल का संवत् अंकित रहता है। ये लोग अरबों की तरह मोहम्मद के सन् से वर्षों का हिसाब नहीं लगाते अपितु अपने राजाओं के राज्यकाल के ही वर्ष गिनते हैं। इनमें से बहुत से राजा दीर्घ काल तक जीवित रहे हैं और पचास वर्षों से भी अधिक समय तक राज्य कर गये हैं; यहाँ के लोगों का विश्वास है कि इनका दीर्घजीवन और राज्यकाल अरबों के प्रति इनके सद्भाव का ही प्रतिफल है। वास्तव में, अरबों के प्रति इतना हार्दिक सौहार्द रखने वाले दूसरे राजा नहीं हैं और इनको प्रजा का भी हमारे प्रति वैसा ही मित्रभाव है।
"बल्हरा कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा नहीं है अपितु यह तो 'खुसरो' (Cosroes) एवं अन्य उपनामों तथा अवटंकों की भांति है, जो सभी राजाओं के नामों के साथ व्यवहृत होता है। जो देश इस राजा के अधिकार में है वह 'कमकम' नामक प्रान्त के किनारे से प्रारम्भ हो कर थल-मार्ग से चीन तक जा पहुंचा है। इसका प्रदेश अन्य ऐसे-ऐसे राजाओं के राज्यों से घिरा हुआ है जो इससे लड़ाई रखते हैं; परन्तु, यह राजा कभी उन पर चढ़ाई नहीं करता। इनमें से एक हरज़ (Haraz) का राजा है जिसके पास बहुत बड़ी सेना है और भारत के सभी अन्य राजामों की अपेक्षा अधिक घुड़सवार रखता है । इस राजा को मोहम्मद के मत से बहुत घणा है । इसका राज्य एक अन्तरीप [भूनासिका] पर स्थित है जहाँ पर बहुत सा माल, ऊँट और पशुधन है । यहां के निवासी चाँदी लेकर यात्रा करते हैं जिसे वे खोदकर निकालते हैं। उनका कहना है कि प्रायद्वीप में बहुत सी चांदी की खाने हैं। इन राज्यों की सीमा 'राहमी' नामक राजा के राज्य से मिली हई है जो हरज के राजा और बल्हरों से लड़ाई रखता है । उच्चवंश अथवा राज्य की प्राचीनता के कारण तो इस राजा का कोई सम्मान नहीं है, परन्तु इसके पास सेना बल्हरा राजा से भी अधिक है । इसी देश में लोग रूई की ऐसी-ऐसी विचित्र पोशाकें बनाते हैं कि अन्यत्र तो वैसी देखने को भी नहीं मिलती। इस देश में कौड़ियों को चलन है, जो छोटे सिक्के की जगह काम में आती हैं; 'साथ ही यहाँ पर सोना, चांदी, लकड़ी, आबनूस और काला चमड़ा भी खूब मिलता है, जो घोड़ों की काठी और मकान बनाने के काम में आता है।"
१ कोंकण । २ हर्ष ।
रूपा-चांदी; अत: रूपावती नाम पड़ा।
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