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पश्चिमी भारत की यात्रा अन्य नामों के विषय में हम उनके दूसरे समकालीन लेखकों के आधार पर ही उल्लेख करेंगे।
अणहिलवाड़ा के संस्थापक के बाद जगराज योगराज] संवत् ८५२ ७६६ ई०) में गद्दी पर बैठा और उसने पैंतीस वर्ष राज्य किया। ___ खीमराज [क्षेमराज] संवत् ८८७ (८३१ ई०) में गद्दी पर बैठा और पच्चीस वर्ष राज्य करके संवत् ६१२ (८५६ ई०) में मर गया। इसी राजा के राज्यकाल में सबसे पहला अरब-यात्री' अणहिलवाड़ा राज्य में हिजरी सन् २३७ तदनुसार ८५१ ई० में आया था और दूसरा सत्रह वर्ष बाद हिजरी सन् २५४ (८६८ ई.) में उसके उत्तराधिकारी के समय में पाया था।
बीरजी [वीरसिंह] संवत् ६१२ (८५६ ई०) में सिंहासन पर बैठा तथा २६ वर्ष राज्य करके संवत् ६४१ (८८५ ई०) में दिवंगत हा।।
इन अरब यात्रियों ने अपने आगमन के समय राज्य करने वाले राजाओं के नाम तक नहीं दिए हैं- प्रस्तु, उनके द्वारा प्राप्त सूचना का क्रमशः विभाजन न करके अणहिलवाड़ा के शासकों की इतिहास में वर्णित समृद्धि के विषय में उनके द्वारा सम्मत प्रमाण का ही यहाँ पर उपयोग करेंगे । "बल्हरा भारत भर में सब से प्रख्यात और महान् राजा है; दूसरे राजा लोग यद्यपि अपने अपने-राज्यों के स्वतंत्र स्वामी हैं परन्तु उसके इस महत्त्व और विशेषाधिकार को सदा स्वीकार करते हैं । जब कभी वह अपना राजदूत उनके यहाँ भेजता है तो वे उसके सम्मान के लिए असाधारण आदर प्रदर्शित करते हैं । अरबों की रीति के अनुसार यह राजा भी बहुमूल्य भेंट और पुरस्कार प्रदान करता है। इसके यहाँ बहुत बड़ी संख्या में घोड़े और हाथी रहते हैं तथा खजाने में भी अतुल धन है। इसके यहाँ वे तातारी चांदी के सिक्के भी प्राप्य हैं जो 'तातारी द्रम्म' कहलाते हैं और जो तौल में 'अरब द्रम्म' से आधा द्रम्म* अधिक होते हैं। इन सिक्कों पर राजा की मूर्ति का ठप्पा लगा होता है और पूर्ववर्ती राजा की मृत्यु के बाद वर्तमान शासक
• अरब के सौदागर सुलेमान ने, जो हिजरी सन् २३७ (९०८ वि; ८५१ ई०) में गुजरात
पाया था, 'सिल सिलात-उत्-तवारीख' नामक पुस्तक लिखी थी। बाद में, अबू जैद प्रल हसन ने उसका शोधन किया और हिजरी सन् ३०३ (९७३ वि ; ६१६ ई०) में सम्पूर्ण की । अबू फारस की खाड़ी के किनारे सिराफ नामक स्थान का निवासी था।
-History of India, Elliot and Dowson; Vol. I, pp. 3-4 Arabesque drachm ३ चाँदी का सिक्का जो तोल में ६० प्रेन के बराबर होता था। १ ग्रेन-१॥ रती, इसलिए
६० ग्रेन=१ तोला के लगभग ।
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