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________________ प्रकरण - ८; अणहिलपुर का वर्णन [१६५ आनन्द से बसी हुई है, जहाँ तरह-तरह की बेलें फैल रही हैं तथा झरनों में अमृत जैसा निर्मल जल बहता है। यहाँ श्रोताओं के लिए वेदों पर उपदेशप्रद वाद (व्याख्यान) होता है । यहाँ पर बोहरे' बहुत हैं और वीरगाँव में भी कम नहीं हैं । यहाँ व्रतियों (यति अथवा जैन साधु), सत्यवादी और व्यवहार-कुशल व्यापारियों तथा व्याकरण-पाठशालाओं की भी कमी नहीं है। अणहिलवाड़ा नर-समुद्र है । यदि पाप समुद्र के पानी को माप सकें तो यहाँ पर निवास करने वाली आत्माओं को गिनने का प्रयास करें। सेना असंख्य है और घंटाधारी हाथियों की भी कमी नहीं है । सालिग सूरि ने वंशराज के ललाट पर राजतिलक किया। वंश राज ने पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया जिनके धर्म का वह अनुयायी था। यह सब संवत् ८०२ में हुआ। वंशराज ने पचास वर्ष राज्य किया और वह साठ वर्ष तक जीवित रहा। ___ इस संक्षिप्त भूमिका के बाद चावड़ा राजाओं की वंशावलो देकर ग्रन्थकार ने सन्तोष कर लिया है । वंशराज के क्रमानुयायियों से वंश-परिवर्तन तक कोई व्याख्या अथवा टीका-टिप्पणी नहीं को गई है और इस प्रकार वह अपने वर्णनीय कुमारपाल तक जा पहुँचता है, जिसके निमित्त यह काव्य रचा गया है। प्रस्तु, ' कारीगरों (दस्तकारों) और किसानों को धन उधार देने वाले बोहरे हिन्दुस्तान भर में पाए जाते हैं जो उद्योगों की पैदावार को हस्तगत करने के लिए लिखा-पढ़ी करा लेते हैं। यह प्राचीन फ्रेंच प्रथा मेतायर (Métayer) के बहुत समान है। घनीमाबादी की पुष्टि में इतिहासकार ने निम्नलिखित अतिशयोक्तिपूर्ण घटना का उल्लेख किया है। "एक दिन, एक स्त्री का पति खो गया। राजा के पास जाकर उसने अपना दुःख निवेदन किया। उसने नगरढिंढोरा पिटवाया कि जो कोई राणो (Ranoh) नाम का काना व्यक्ति हो वह बड़े चबूतरे (न्यायपीठ) पर उपस्थित हो जाय । इस पर नौ सौ निन्यानवे राणो नामक काने व्यक्ति वहां पर पा गए। वह दुःखिनी स्त्री उनकी कतार के चारों ओर घूम गई परन्तु उसका पति नहीं मिला। फिर दुबारा ढिंढोरा पीटा गया तब कहीं उसके पति का पता चला।" 3 रत्नमाला ग्रंथ के अनुसार वनराज ५० वर्ष की अवस्था में गद्दी पर बैठा था और फिर लगभग ६० वर्ष तक जीवित रहा। उसकी सम्पूर्ण प्रायु १०६ वर्ष २ मास २१ दिन को हुई थी। (प्रबन्ध चिन्तामणि पृष्ठ १३) । प्राईन ए-अकबरी में भी वनराज का ७४६ ई० में गद्दी पर बैठना और ८०६ ई० तक राज्य करना लिखा है। परन्तु, डा० भगवानलाल इन्द्रजी ने (इण्डियन एन्टीक्वेरी भा० १७, पृ० १९२) वनराज का राज्यकाल ७६५ ई० से ७८० ई० तक माना है और योगराज का राज्यारोहण समय ८०६ ई. बताया है। बीच के २६ वर्ष के अन्तर का कोई समाधान अभी नहीं हो पाया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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