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________________ १६४ ] पश्चिमी भारत का यात्रा के आधीन थे। मेवाड़ के इतिहास' में इस घटना का समय संवत् ७६६ (७४० ई०) बताया गया है। इतिवृत्त [प्रकीर्ण संग्रह) में आगे लिखा है कि "अणहिलपुर बारह कोस' (१५ मील) के घेरे में बसा हुआ था, जिसमें अनेक मन्दिर और पाठशालाएं थीं; चौरासी चौक और चौरासी बाजार थे, जिनमें सोने और चाँदी के सिक्कों की टकसालें थीं। विभिन्न वर्गों के अलग-अलग मोहल्ले थे, जिनमें अलगअलग तरह के व्यवसाय चलते थे जैसे हाथीदाँत, रेशम, लाल, हीरे, मोती आदि के पृथक-पृथक् चौक' थे । सर्राफों अथवा मुद्रा-व्यवसायियों का एक बाजार था; सुगन्धित द्रव्यों और अंगरागों का एक; चिकित्सकों अथवा अत्तारों का एक; दस्तकारों का एक; सुनारों का एक और चाँदी का काम करने वालों का दूसरा; मल्लाहों, चारणों और भाटों के भी अलग-अलग मोहल्ले थे। नगर में अट्ठारह वर्णों अथवा जातियों के लोग बसते थे। सभी सुखी थे। राजमहल भी शस्त्रागार, पालान (हाथीशाला), घुड़साल और रथागार आदि के लिए अलग-अलग बनी हुई इमारतों से घिरा हुआ था। विभिन्न प्रकार के सामानों के लिए अलग-अलग मंडियां थीं, जहाँ पर आयात, निर्यात और विक्री पर चुंगी लो जाती थी; जैसे-मसालों, फलों, औषधियों, कपूर, धातु, और देशी अथवा विदेशी प्रत्येक बहुमूल्य वस्तु पर कर लिया जाता था। यहाँ दुनियाँ भर की चीजों का व्यापार होता था। चुंगी को दैनिक प्राय एक लाख टंक होती थी। यदि आप पानी मांगोगे तो आपको दूध मिलेगा। बहुत से जैन मन्दिर हैं और एक झील के किनारे सहस्रलिंग महादेव का मन्दिर भी बना हुआ है । यहाँ की आबादीचम्पा, पुन्नाग, खजूर (ताड), जम्बू, चन्दन और ग्राम की कुंजों के बीच में १ देखो 'राजस्थान का इतिहास' भा. १, ५, २२७ २ कोस शब्द का अनुमान गो (गाय) के रंभाने [क्रोश से लगाते हैं जो प्रावाज किसी भी दिन के शान्त वातावरण में सवा मील तक सुनी जा सकती है। ३ इटालियन 'piazza' शब्द से इसका अर्थ बहुत अच्छी तरह व्यक्त होता है। * एक ताँबे का सिक्का जिसके मूल्य में परिवर्तन होता रहता है परन्तु साधारणतया उसकी कीमत एक रुपये के बीस टंक समझी जा सकती है । इस प्रकार अकेले प्रणहिलवाड़ा की चुंगी को प्राय पाँच हजार रुपये प्रतिदिन होती थी अथवा अट्ठारह लाख रुपया वार्षिक, जो दो लाख पचीस हजार पौण्ड के बराबर होती है। इस राशि का मूल्य यदि प्राज ब्रांका जाय तो दस लाख (पौण्ड) होगा । अब यदि इस प्राय में राज्य के चौरासी बन्दरगाहों पर वसूल होने वाले आयात-निर्यात कर को और जोड़ दिया जाय तो फिर परब यात्रियों ने जिस समृद्धि का वर्णन किया है उस पर हमें प्राश्चर्य नहीं होना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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