SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ८; तत्कालीन भारत में क्रांति [ १६३ इतना अधिक फैला कि इस प्रदेश का नाम काठी-वाड़ [ काठियावाड़ ] प्रसिद्ध होकर पुराना नाम सौराष्ट्र गौण पड़ गया। प्राचीन हिन्दुनों की भ्रमणशील वृत्ति को स्वीकार करने वाले चाहे न मानें परन्तु सिकन्दर के आक्रमण से पूर्व एवं पश्चात् होने वाले इन विस्फोटों के कारण घटित हुए परिवर्तनों के विषय में वे कोई विवाद उपस्थित नहीं कर सकते । इस प्रदेश के अन्तर्निवासियों के लिए सिन्धु नदी 'अटक '' भले ही रही हो परन्तु बाहरी 'ईमाँ ( Iman) लुटेरों' के rust के लिए इससे कोई ऐसी अटक नहीं थी । इसीलिए इस छोटे से प्रायद्वीप में उत्तर की बहुत सी जातियों के नमूने अब तक भी पाए जाते हैं । अस्तु, अब प्रौर श्रागे चलिए । । वंशराज द्वारा अणहिलवाड़ा की स्थापना के श्रागे नगर-वर्णन आता है जो बहुत ही शोभा-समृद्धि के साथ आरम्भ होता है धार्मिक लेखक ने इस नगर खों देखा चित्र खींचा है अथवा निर्माता के समय में यह जैसा था उसका वर्णन किया है, इस बात का तो हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं। इन क्रान्तिकारी प्रदेशों में नया नगर बसाने के लिए लोगों को जो सुविधाएँ दी जाती हैं वे आश्चर्यजनक होती हैं; फिर भी, ग्रन्थकर्त्ता ने जिस शोभा और समृद्धि का वर्णन किया है वह एक ही राजा के राज्यकाल में प्राप्त हो गई हो, यह , सम्भव है । परन्तु यदि आचार्य का कथन ही सत्य मान लिया जाय तो हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि पराजित चावड़ा राजा ने तो केवल अपनी राजधानी देवपट्टण से अणहिलपुर में बदल दी थी; और इतना हम साधिकार अधिक कह सकते हैं कि विनष्ट वलभी के विस्थापित निवासियों के दल के दल बालरायों की नयी राजधानी बसाने के लिए वहाँ पर चले आए थे । यह भी असम्भव नहीं है कि जिस नगर की वंशराज ने वृद्धि की वह पहले ही से विद्यमान हो। इस अनुमान की पुष्टि किसी अंश में मेवाड़ के इतिहास से होती है, जिसमें यह वर्णित है कि गुहिलोत वंश का संस्थापक बप्पा ( जिसके पूर्वज बहुत पहले बलभी के शासक रह चुके थे ) चित्तौड़ में अच्छी तरह जम जाने के बाद एक सेना लेकर अपने भतीजे चावड़ा राजा को अपने पूर्वजों के राज्य में पुनः संस्थापित करने के लिये गया था । इससे हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि देव-पट्टण के चावड़ा वलभी ''घटक' का अर्थ है - प्रडचन या रुकावट अथवा रोधक । सिन्धु को यह नाम आधुनिक समय में दिया गया है जब कि हिन्दू लोग अपनी मतविभिन्नता के कारण (शेष संसार मे ) पृथक् रह गए । परन्तु, इतना होने पर भी मनु ने लिखा है कि मध्य एशिया में हिन्दू-धर्म स्थापित हुआ था; भारतीय इतिहास के Savans ने सिन्धु को अपनी शोध में उतना ही 'uce' बना दिया जितना कि हिन्दुओंों ने अपने धर्म को । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy