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________________ १६२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा विनाश किसी विदेशी आक्रमणकारी के हाथों हुआ ।" मैं अन्यत्र कह चुका हूँ कि यह एक ऐसा समय था जब कि सभी हिन्दू साम्राज्यों में एक तूफान सा आया हुआ था । क्रान्ति, राज्यापहरण और नए नए वंशों एवं जातियों के जन्म सम्पूर्ण भारतवर्ष में हो रहे थे । ' चौहानों का इतिहास उठा कर देखिए, ठीक इसी समय सिन्ध से किसी शत्रु ने अजमेर पर आक्रमण कर के वहाँ के राजा माणिकपाल [ राय] का वध किया । इसी काल में, बप्पा रावल ने, जिसको 'बल्ला' भी कहते हैं, और जिसके पूर्वज वलभी से भाग निकले थे, चित्तौड़ प्राप्त किया तथा अपने काका मोरी (Mori ) के निमित्त किसी विदेशी शत्रु से इसकी रक्षा की। ठीक इसी संवत् में, तँवरवंशी राजानों द्वारा प्राचीन इन्द्रप्रस्थ अथवा दिल्ली की पुन: संस्थापना हुई; भोजचरित्र में लिखा है कि परमार राजा भोज को किसी उत्तरदेशीय शत्रु ने धार से निकाल दिया था और उसे चन्द्रावती में जाकर शरण लेनी पड़ी; चालुक्य अथवा सोलंकी राजाओं को भी गङ्गातट पर स्थित सोरों भद्र (Sooroh Bhadra) से निष्कासित कर दिया गया था अतः वे मलाबार में कल्याण में जा बसे थे; यदु भाटियों को पाञ्चालिका में सतलज के किनारे सुल्तानपुर ( Sulthanpur) से निकाला गया और उन्हें भारतीय रेगिस्तान, मरुस्थली में जाकर बसना पड़ा; और यहाँ तक कि ग्वालकुण्ड (गोल- कुण्डा ) तक भी उसी विनाशकारी शत्रु के प्रबल आतंक का प्रभाव फैल गया जिसको इन पुस्तकों में 'उत्तर का जादूगर' अथवा 'गजलीबन्ध ( Gujulibund ) का दानव, आदि कह कर वर्णन किया गया है । ये सब तिथियाँ और घटनाएं उस काल से मेल खाती हैं जब कि इसलाम ने भारत में पहले-पहल पदार्पण किया था और वे अपने साथ हज़ारों की संख्या में इण्डो-सीथिक जाति के उन लोगों को लाए थे, जो केवल सूर्य, अश्व और अपनी तलवार को पूजते थे तथा किसी भी धर्म अथवा मत को मानने या अपनाने के लिए तैयार थे; इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मुलतान से आते हुए काठियों ने इसी समय ( कच्छ के ) रण को पार किया था और वे सौरों के देश में बस गए थे । यहाँ पर उनका प्रभाव ' Forbes' Rāsamālā, Rawlinson, Vol. I, p. 36 २ इन घटनाओं का विस्तृत विवरण 'इतिहास' क्रुक्स संस्करण, १६२०; भा. १ पृ. २८८२६० र पढ़िए । 3 कजलीवन । ४ संभव है, अणहिलवाड़ा के प्रथम राजवंश का द्योतक 'चावड़ा' शब्द 'सोर' शब्द का ही पभ्रंश हो (क्योंकि) 'च' और 'श' निरंतर अन्तःपरिवर्तनीय हैं। मराठा लोग 'च' नहीं बोल पाते; वे 'चीतो' को 'सीतो' कहते हैं, इत्यादि । संभव है, देव शोर सोमनाथ के सौर राजानों ने ही गुजरात के प्रायद्वीप को 'अपना राष्ट्र' (सौराष्ट्र) नाम दिया हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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