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________________ प्रकरण : वनराज [ १६१ और वन में आने पर उस बालक का जन्म हुआ । यह सुन कर प्राचार्य ने उस बालक को बंसराज अथवा अधिक शुद्ध रूप में, वनराज का पद दिया जिसका अर्थ 'वन का राजा' हुआ ।' जब वह बालक बड़ा हुआ तो उसने मावला के प्रसिद्ध डाकू सूरपाल के साथ राज्यकर के खजाने को लूट लिया जो कल्याण ले जाया जा रहा था । उसी की सहायता से उसने सेना इकट्ठी की और राज्य स्थापित किया तथा एक नगर बसाया । इस नगर का स्थान उसने एक ग्वाले की सहायता से चुना था जिसका नाम अणहिल था और उसी के नाम पर यह हिलपुर अथवा अणहिल नम्रर कहलाया” । प्रागे चलने से पूर्व यह बता देना उचित होगा कि 'प्रकीर्ण संग्रह' और भाटों की परम्परा दोनों ही में उक्त काल का विवरण 'गुजरात के इतिहास' शीर्षक के अन्तर्गत दिया गया है। 'प्रकीर्ण संग्रह' में लिखा है कि 'वंशराज सौराष्ट्र के राजा जसराज चावडा' का पुत्र था और उसकी मृत्यु के पश्चात् पैदा हुआ था । प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर देव बन्दर, पट्टण और सोमनाथ, ये जसराज के मुख्य नगर थे; चावड़ा राजा के समुद्री आक्रमणों और विशेषतः बंगाल के जहाजों की लूट के कारण समुद्र में ज्वार आया और देव बंदर उसमें निमग्न हो गया। इस दुर्घटना में वंशराज की माता ( Soonderoopa) सुन्दीरूपा [ रूपसुन्दरी ] को छोड़ कर अन्य सभी लोगों का अन्त हो गया । रूपसुन्दरी को जलदेवता वरुण ने इस विपत्ति के विषय में पहले ही सचेत कर दिया था ।" भाट - परम्परा में वंशराज के जन्म और वंश की पुष्टि करते हुए यह बताया गया है कि उसके पिता जसराज और उसकी सम्पूर्ण जाति का नाश किसी विदेशी आक्रमणकारी द्वारा हुआ और उस बालक ने अपने जीवन-रक्षक जैन साधु के प्रति कृतज्ञ होकर जैनमत को प्रश्रय दिया एवं स्वयं उसे ग्रहण किया। सम्भव है, देव बन्दर के विषय में ऐसी कोई दुर्घटना हुई हो परन्तु मैं भाटों की पोथियों द्वारा समर्थित इस जनश्रुति को अधिक सही मानता हूँ कि इसका १ कुमारपाल - प्रबन्ध ( जिन मण्डन कृत) में लिखा है कि कपड़े की झोली में जिस वृक्ष की शाखा पर शिशु वनराज को माता ने लटका रखा था वह 'वरण' का पेड़ था इसी लिए आचार्य ने उस का नाम 'वरणराज' या वनराज रखा । ३ सूरपाल वनराज का मामा था, ऐसा प्रबन्धचिन्तामरिण एवं अन्य प्रबन्धों में लिखा है । 'नर' नगर का प्राकृत रूप है जिसका प्रर्थ परकोटे वाला शहर होता है । ४ जयशेखर चावड़ा, फार्बस रासमाला ( रॉलिन्सन, १६२४ ) - भा० १; अ० २ । ५ बन्दरगाह देव अथवा दिव (द्वीप) जिसको पुर्तगालियों ने Diu (बिउ ) लिखा है । कुछ इतिहास संशोधकों का मत है कि वनराज माता का नाम अक्षता या छता देवी था और उसको मोढेरा ब्राह्मणों ने संरक्षण दिया था । रासमाला, गुजराती अनुवाद भा. १, अध्याय २, दी० रणछोड़ भाई उदयराम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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