SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण - ८; कुमारपाल चरित्र [ १५५ (Ptolemy) के बालेकूरों (Balekouras) के उद्गम के विषय में पर्याप्त कहा जा चुका है क्योंकि दूसरी शताब्दी में मिस्र के इस शाही भूगोल-शास्त्री को इस ओर भी ध्यान देना पड़ा था। अब हम कुमारपालचरित्र में से वे उद्धरण प्रस्तुत करते हैं जिनमें वंश और राजधानी के परिवर्तन का वृत्तान्त उस समय से प्रारम्भ होता है जब चावड़ों (Chaura) अथवा सौरों (Sauras) ने बल्लों से राज्य ग्रहण किया और राजगद्दी को वलभी से अणहिलवाड़ा ले पाए । यह ग्रन्थ' अड़तीस हजार श्लोकों में है और इसका मूल संस्कृत में है। इसके रचयिता जैनों के प्रसिद्ध गुरु सैलग सूर प्राचार्य ने जिस राजा के नाम पर, मुख्यतः उसीका चरित्र वर्णन करने के निमित्त, इसकी रचना की है उसने ११४३ [११३३] ई० से ११६६ ई० तक राज्य किया था। उसके कुल अथवा सोलंकी वंश के इतिहास को पूर्ववर्ती चावड़ा वंश से सम्बद्ध करने के लिए ग्रंथकार ने संवत् ८०२ (७४६ ई०) भारत विषयक ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसने अपने पूर्ववर्ती भूगोल-शास्त्री हॅक्टोइस, (Hectoeus), ई० पू० ५००, हॅरॉडोटस-ई० पू० ४८४-४३१--टीसिग्रस (Ktesias), ई०पू० ३९८, डायोडोरस (ई०पू० १००-१०० ई०), प्लूटार्क, स्ट्राबो (ई०पू०६०-१६ ई०), कर्टिनस (Curtius) १०० ई०, एरिमन-२०० ई०, जस्टिनस (५०० ई० से पूर्व), मेगस्थनीज़ (ई० पू० ३०५), इरॉटोस्थिनीज (ई० पू० १४०), प्लिनी (२३-७६ ई.) और मॅरिनोस (१२० ई०) प्रादि के लेखों से पर्याप्त सहायता ली थी। --Ancient India as described by Ptolemy-Mc Crindle pp. 1927, Intro., xiii-xviii. विशेष-क्लॉडियस टॉलेमी कृत 'अल मजस्त' का अरबी से संस्कृत भाषामें अनुवाद करके उसी के अधार पर जयपुर-नगर-संस्थापक सवाई जयसिंह के गुरु सम्राट जगन्नाथ ने 'सिद्धान्त कौस्तुभ' नामक ग्रंथ की रचना की जिसकी एक हस्तलिखित प्रति महाराजा जयपुर के पोथी खाना में उपलब्ध है। १ इस ग्रन्थ का एक संस्करण गुजराती भाषा में है और इसी की संवत् १४६२ (१४३६ ई०). में लिखित प्रतिलिपि उदयपुर में महाराणा के पुस्तकालय से प्राप्त कर के सर्वप्रथम मैंने अनुवाद किया था। यह स्पष्ट है कि इसी संस्करण के आधार पर अबुल फजल ने अपने गुजरात के पूर्व इतिहास का ढांचा तैयार किया था और उसमें राजवंशों की तालिका दी थी। बाद में, प्रणाहलवाड़ा के पुस्तकालय से मुझे संस्कृत मूल को भी एक प्रतिलिपि मिल गई जिसका भी मैंने जैन यति की सहायता से अनुवाद कर डाला, जो गुजराती संस्करण से पूर्णतः मिल गया । ये दोनों ही अनुवाद मैंने रायल एशियाटिक सोसाइटी को भेंट कर दिए। २ शीलगुण मरि, जिनको क० टॉड सैलग सूरि लिखते हैं, कुमारपालचरित के कर्ता नहीं, जैन आचार्य थे, जिन्होंने वनराज को अपने संरक्षण में रखा था। वास्तव में, क. टॉड को जो कुमारपालचरित्र की प्रति मिली थी वह सैलग सूरि की कृति नहीं थी। जिन-मण्डन गणि कृत कुमारपालप्रबन्ध (सं०) का रचना-संवत् १४६२ है। जिसके आधार पर ऋषभदास कवि ने सं० १६७० में गुजराती भाषा में 'कुमारपालरास' की रचना की है। जिन-मण्डन गणि ने 'अड़तीस शास्त्रों' की रचना की थी जिसको भूल से क० टॉड 'अडतीस सहस्र' समझ गए, ऐसा लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy