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________________ १५४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा वंशी । मेवाड़ के राणा भी इसी वंश के हैं। ढाँक का वर्तमान शासक भी, जो मेरे उधर से निकलने के समय बन्दी था, बल्ल-वंशी ही है। बल्ल लोग केवल सूर्य की ही उपासना करते हैं और सौराष्ट्र में ही इस देवता के मन्दिर अधिक मिलते हैं।' इस प्रकार धर्म, उद्गम-सम्बन्धी जनश्रुति और प्राकृति आदि सभी बातों से यह विदित होता है कि इस जाति का उद्गम इण्डोसीथिक शाखा से हना है, और सम्भवतः म्लेच्छवंशीय होने की बात छुपाने के लिए राम के वंशज होने की कथा गढ़ ली गई है । वलभी, जिसको मानचित्र में वळे ह' (Walleh लिखा है और जिस [मूल] ग्राम का अब पता भी नहीं लगता है, की परिधि बारह अथवा पन्द्रह कोस बताई जाती है। यहाँ की नीवों में से अब भी बड़ीबड़ी ईंटें खोद कर निकाली जाती हैं जो डेढ़ से दो फीट तक लम्बी होती हैं; परन्तु, इस विषय में फिर लिखेंगे। अरब-यात्रियों के बलहरों अर्थात् टोलेमी उसके वंशज भी इस पद का उपभोग ६७३ ई. तक करते रहे । तदनन्तर चौलुक्य-वंशीय तैलिप द्वितीय ने राष्ट्रकूट कक्कर'ज द्वितीय से पुनः यहाँ का राज्य छीन लिया। इण्डियन एण्टोक्वेरी, भा० ११, पृ० १११ पर एक दानपत्र उद्धृत है, जिससे उक्त बातों की पुष्टि होती है। १ बड़ौदा में भी एक सूर्यनारायण का मंदिर है; गायकवाड़ के प्रधान मन्त्री इसके उपासक हैं । यह प्रधान मन्त्री पुरवई (Purvoe) जाति के हैं, जो, में समझता हूँ, प्राचीन गुबे (Gucbre) जाति से निकले हैं। गदि में भूलता नहीं हूं तो बनारस में भी एक सूर्य मन्दिर है। ३ वल्ल-मण्डल। 3 Ptolemy (टॉलमी) मिस्र का निवासी सुप्रसिद्ध ज्योतिषी, गणितज्ञ एवं भुगोलवत्ता था। उसके जन्म-स्थान, समय एवं अन्य जीवनवृत्तान्त के विषय में स्पष्टतया कुछ भी ज्ञात नहीं है। विद्वानों का अनुमान है कि वह अलेक्जण्ड्रिया में ईसा की दूसरी शताब्दी में पैदा हुआ था। यह भी कहा जाता है कि वह टॉलमी राजवंश का था और "प्रलॅक्जण्डिया का राजा" कहलाता था। परन्तु, इन बातों के लिए कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। टॉलमी ही पहला विद्वान था जिसने ग्रीक ज्योतिष का क्रमबद्ध विषय-विवेचन किया था। उसका सब से बड़ा ज्योतिष ग्रन्थ 'Megale Syntaxis les Astronomais' बताया जाता है जो अरबी नाम 'अल मॅनॅस्त' (Almagest से अधिक प्रसिद्ध है । इस ग्रंथ में नक्षत्रों की गति, उनके प्रभाव एवं ग्रीकों द्वारा प्रयुक्त ज्योतिष-यन्त्रों का विस्तृत विवरण दिया गया है। कापरनिकस द्वारा निरस्त होने तक उसके सिद्धान्त सर्वमान्य रहे । उस के भूगोल-ग्रन्थ Geographika Syntaxis का भी बहुत ऐतिहासिक महत्त्व है । इसमें वर्णनात्मक सूचनाएँ तो बहुत कम हैं परन्तु विभिन्न देशों की अक्षांश और देशांशस्थिति बताते हुए एक विशाल मूची दी हुई है। (चालू) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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