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प्रकरण - ८; बलहरा पद की उत्पत्ति
[ १५३ टायर (Tyre) था क्योंकि भारतीय बन्दरगाह तो खम्भात में था; परन्तु, यह भी असम्भव नहीं है कि प्राचीन टायर नगर ने यहाँ के बहुमुखी व्यापार में योग दिया हो जिसके कारण अफ्रीका और अरब का माल अति प्राचीनकाल से विभिन्न शाखाओं में बँट गया था, और यह भी नहीं कहा जा सकता कि सॉलोमन के साथी और वाहक हिरम के नाविकों ने भारत के सीरिया, सौर भूमि, का मार्ग उस समय तक तलाश नहीं कर लिया था।
ऐतिहासिक काव्य 'कुमारपाल-चरित्र' में अणहिलवाड़ा के राजवंशों का चित्रण हुआ है। इस काव्य में से उद्धरण देने के पूर्व यहाँ के क्रमानुगत राजाओं द्वारा प्रयुक्त 'बलहरा' पद का उद्गम अवगत करने के निमित्त इससे भी पहले के युग का अनुशीलन करना अधिक संगत होगा। भारतवर्ष के सुन्दरतम प्रदेश सौराष्ट्र में बहुत पहले आकर बसने वाली जातियों में बल्ल या वल्ल (Balla) नामक जाति थी जिसको कुछ विद्वानों ने महान् इन्दुवंश की शाखा बतायी है-इसी लिए इसका नाम 'बलि का पुत्र' (Bali ca putra) पड़ा है, जिसका मूल (बालिकदेश), (Balica des) २, Balk (बल्क) अथवा ग्रीकों का बेक्ट्रियिा (Bactria) है। इस अनुश्रुति के मूल में कुछ भी तथ्य छुपा हो, परन्तु इस जाति के राजाओं को भाटों द्वारा दिये हुए 'ठट्ट मुलतान का राय' (Tatta Mooltan ca Rae) विशेषण से इसका प्रबल समर्थन अवश्य हो जाता है। एक दूसरे अधिकारी विद्वान् का मत है कि राम के ज्येष्ठ पुत्र लव (जिसको लौ Lao बोलते हैं) के पुत्र का नाम बल्ल था। उसने धऊक (Dhauk) नामक प्राचीन नगर को विजय किया था जो मंगीपट्टन कहलाता है और वही वळा-खेत्र (Bala-Khetra) नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र की राजधानी है । कालान्तर में, इस वंश के लोगों ने वलभी की स्थापना की और 'बाल-राय'' का पद ग्रहण किया। इस प्रकार ये लोग सूर्यवंशी थे, न कि इन्दु
, इसी कारण यह प्रदेश 'वल्ल-मण्डल' कहलाया।
--एपिग्राफिया इण्डिका, भा० १८, पृ० ६५ • मिस्टर एल्फिन्स्टन ने बताया है कि इसका पूर्व-गौरव इसके विशेषण 'अम-अल-बेलाद'
-Um-ul-Belad (नगरों की माता) से प्रतीत होता है। 3 सौराष्ट्र में 'ढांक' या 'ढंक' नामक स्थान से तात्पर्य है । Dhank के स्थान पर Dhauk
मुद्रित होने से शायद यह गड़बड़ी हुई है। ४ 'बालराय' अथवा 'बलहरा' पद का सम्बन्ध 'बल्ल-प्रदेश के राय अथवा राजा होने से है,
केवल सोलंकी-वंश के राजामों से ही नहीं। वलभी का राज्य ७६६ ई. के लगभग नम्र हो चुका था और चौलुक्य राजा मंगलीश की मृत्यु के बाद उसका राज्य दो भागों में बँट गया था। उनमें से पुलकेशिन के वंशज वल्लभ कीर्तिवर्मा को पराजित करके मान्यखेट के राष्टकूट-वंशीय दन्ति दुर्ग ने ७५३ ई० के लगभग उसका राज्य हस्तगत कर लिया था और 'वल्लभराज' अथवा 'बाल गय', जिसका अपभ्रंश 'बलहरा' है, उपाधि ग्रहण की थी।
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