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________________ १५२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पर क्रोध कर बैठा है । अमूर्त की छाया पर झगड़ते हुए विद्वानों का विवाद भी एक मनोरंजन की वस्तु बन जाता है; अजमेर से निकल कर पद्दर नाम की कोई नदी कच्छ की खाड़ी में नहीं गिरती है और लूनी नदी पर, जो वहीं से निकल कर सिन्धु से प्राप्लावित वृहद् रण में जा मिलती है, कोई पदीन नहीं रहते । हॅरॉडोटस ने पदीनों को शिकारी और कच्चा माँस खाने वाले बताया है, अतः सम्भव है कि उसने भारत में अब तक 'पारधी' कहलाने वाली शिकारी अथवा बहेलिया जाति के बारे में सुन लिया होगा; परन्तु इन लोगों के व्यवसाय के समान इनका निवास स्थान भी स्थायी नहीं है । " अब हम अणहिलवाड़ा राज्य के विषय में इसी के इतिहास से उद्धरण देते हुए इसकी वर्तमान स्थिति एवं निजी पर्यवेक्षण के आधार पर कुछ बातें प्रस्तुत करेंगे | जिस प्राचीन नहरवाला के अन्वेषण में द' ऑनविले तत्पर था उसके विषय में तो हमें वृद्ध यहूदी पैगम्बर के समान यही कहना पड़ेगा कि वे भग्न- हृदय होकर तुम्हारे लिए यह कहते हुए विलाप करेंगे और पश्चात्ताप करेंगे कि टायर ( Tyre ) नगर कैसा 'क था ?' अणहिलवाड़ा बन्दरगाह न होते हुए भी भारत का Gangarides शब्द का संस्कृत रूप 'गाङ्गराष्ट्रिय' बताया गया है, परन्तु Lassen ने इसे विशुद्ध ग्रीक शब्द माना है । सामान्यतः गंगा के तट पर बसे हुए अथवा घूमने-फिरने वाले जन-समुदायों के लिए ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है । Periplus के अनुसार गङ्ग (Gangé) इनकी राजधानी थी। Pliny का कहना है कि Parthalis इनकी राजधानी थी, जो 'वर्धन', आधुनिक बर्दवान, के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकती । सम्भवत: दक्षिण बिहार के 'गोङ घी', उत्तर-पश्चिम के 'गाङ्गयी' मोर पूर्वीय बंगाल के 'गङ्गरार' इसी Gangaride शब्द के परिवर्तित रूप हैं जो मूलतः उस समय एतद्देशीय समस्त जन-समुदाय के लिए व्यवहृत हुआ हो । वैसे, संस्कृत में 'गङ्गाय' अथवा 'गाङ्गतेय' शब्द हैं, जिनका अर्थ 'गङ्गातट पर घूमने-फिरने वाले लोग' और 'मत्स्य विशेष' दिया गया है। स्वाभाविक है कि तटवासी मत्स्याहारी तो थे ही । - वाचस्पतयम् और त्रिकाण्डशेष कोष । इसी लेखक द्वारा हमें ( पृ० २२२) यह भी गम्भीर सूचना प्राप्त होती है कि Syrastrene (साइरास्ट्रीनी) नाम की उत्पत्ति Syrastra - साइराष्ट्र [ सौराष्ट्र ( ? ) ] |- नामक एक छोटेसे गाँव से है (Vers le fond du Golfe de Cutch) जो कच्छ की खाड़ी के पास है; फिर, भाग ३ के पु० २२४ पर स्वर उच्चारण के साम्य के प्राधार पर ही यह तथ्य निर्धारित किया गया कि "Dunga se reconnoit avec une simple transposition de deux letters daus le petit village de Gundar." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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