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पश्चिमी भारत की यात्रा . परन्तु, शहरों के नामों में कुछ उच्चारण की समानता और कुछ चाँदी के सिक्कों के उल्लेख के अतिरिक्त यह सभी विवरण सन्देहात्मक और अस्पष्ट सा प्रतीत होता है; और, उक्त दोनों बातों का पता तो वे अपने 'आनन्दप्रद' समुद्रतट को छोड़े बिना किसी साधारण नाविक से पूछ कर भी चला सकते थे। कुछ भी हो, जहाँ तक 'मोहरमी-अल-अदर (कान छिदाने वालों) के बलहरा राजाओं का सम्बन्ध है, यह कृति इतनी भ्रामक है कि यदि एम० रेनॅडो की 'प्राचीन सम्बन्ध' (Rclations anciennes) नामक पुस्तक न भी प्रकाशित होती तो साहित्यिक जगत् की किंचित् मात्र भी हानि न होती। अरबी और यूरोपीय आलोचक अपने बौद्धिक अनुमानों में पर्याप्त समय नष्ट करने के बाद भी इस अन्धेरे विषय पर पूरा-पूरा प्रकाश नहीं डाल सके । समरकन्द के राजवंशीय ज्योतिषी उलुगबेग' का अनुसरण करते हुए उन्होंने अणहिलवाड़ा को स्थिति
प्राच्य पुरातात्विक विशाल निधि की अोर पश्चिमी विद्वानों का ध्यान आकृष्ट करने वाले अग्रगण्य विद्वानों में हाइडे की गणना की जाती है । उसकी प्रमुख कृतियों में निम्न लिखित उल्लेखनीय हैं
१. उलुगवेगी सारणी के प्राधार पर देशांश और अक्षांश पर विचार सम्बन्धी ग्रन्थ२. मलाई भाषा सम्बन्धी ग्रंथ--१६७७ ई० ३. Historia Religionis--१७०० ई० ४. हाईडे के कुछ अप्रकाशित ग्रंथ और लेखादि को डा० ग्रीगोरी शॉप (Gregory ___Sharpe) ने १६६७ ईस्वी में प्रकाशित किया था। ५. हाइडे ने बोडलियन लाइब्रेरी का सूचीपत्र भी १६७४ ईस्वी में प्रकट किया था।
-E. B., Vol. XII, p. 426-27 ' मिर्जा मुहम्मद बिन शाह रुख उलुग बैग समरकंद के बादशाह तैमूर महान् का पोत्र था। वह ज्योतिष शास्त्र का महान् विद्वान था । उसने समरकंद में एक वेधशाला भी बनवाई थी जहाँ से सूर्य, चन्द्र और अन्य ग्रहों का वेध करके सारणियां प्रसारित की जाती थीं। इन सारणियों के साथ बड़े रोचक वक्तव्य भी निकलते थे जिन से त्रिकोणमिति और ज्योतिर्गणित पर प्रकाश पड़ता था। Sedillot (सीडीलोट) ने पेरिस से १८४७ ईस्वी में इनको प्रकट किया और बाद में १८५३ ई० में इनका अनुवाद भी प्रकाशित किया। (Prolegomenes des Tables Astronomiques d'Ouloug Beg) उसने परब सारणियों का भी शोधन किया था। उलुग बेग का जन्म १३६४ ईस्वी में हुअा था; वह १४४७ ई० में समरकंद के तख्त पर बैठा और १४४६ ई० में उसके सब से बड़े पुत्र ने उसकी हत्या कर दी।
. -E. B., Vol. XXIII, p. 722 जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंहकारित 'जीच उलुग बेगी' का संस्कृत अनु. वाद महाराजा जयपुर के नगर-प्रासाद-स्थित पोथीखाने में उपलब्ध है ।
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