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________________ १४८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा के लिए प्रेरणा देने वाली अपूर्ण किन्तु स्पष्ट बुद्धि की तुलना कितनी ही शताब्दियों पूर्व के अरव-यात्रियों द्वारा लिखित अस्पष्ट और समझ में न आने योग्य वृत्तान्तों से करते हैं तो इन अपर लेखकों की भूलों का कोई आधार ही समझ में नहीं पाता; यद्यपि सभी यूरोपीय लेखकों द्वारा निर्दिष्ट स्थिति भी संदेह से शून्य नहीं है परन्तु अरब लेखकों द्वारा वणित स्थिति तो इतनी अस्पष्ट है कि वह इस राज्य के किसी भी भाग पर घटाई जा सकती है; और मेरे मन में तो इनसे ऐसा भी संशय उत्पन्न होता है कि ऐसे यात्री कभी पैदा भी हुए थे या नहीं ? विशेषतः उन भागों के वर्णन से, जिनसे मैं अच्छी तरह परिचित हो गया हूँ। मैं तो कहता है कि यदि ये वृत्तान्त प्रकाश में न भी पाते तो संसार की कोई हानि नहीं होती। 'नवीं शताब्दी के अरब यात्री' नामक पुस्तक के अनुवादक अब्बे रेनॅडो (Abble Renaudot) ने एक लम्बी भूमिका में अबुलफ़िदा' (Abulfida) (Anabasis) का ही उत्तराद्ध माना जा सकता है । इण्डिका के तीन भाग हैं। पहले में मेगस्थिनीज और इरतोस्थिनीज़ (Eratosthenes) के प्राधार पर इस देश का विवरण दिया गया है। दूसरे में क्रीट निवासी नीअरकॉस (Nearchos) की सिन्धू से पॉसितिनिस (PASITIGRIS) तक यात्रा का वर्णन स्वयं यात्री के विवरण के प्राधार पर किया गया है; और तीसरे में कुछ ऐसे प्रमाण इकट्ठे किए गए हैं कि दुनियां के दक्षिणी भाग अत्य. धिक उष्ण होने के कारण बसने योग्य नहीं हैं। 'Ancient India, Magethenes and Arrian' by Mc Crindle, p. 182 १ Arabian Travellers of the Ninth Century. • Renaudot का जन्म पेरिस में १६४६ ई० में हुआ था। वह प्रसिद्ध धर्मशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता था | abée (पूज्य, धर्माचार्य) उसकी उपाधि थी । उसकी प्रसिद्ध पुस्तकें (1) Historia Patriarcharum Alexandrinorum (Paris, I713) और (2) Collection of Eastern Litergic (2 vols. 1715-16) हैं। उसकी मृत्यु १७२० ई० में हुई। -F. B., Vol. XX, p. 394 अरब के सुप्रसिद्ध इतिहासलेखक और भूगोलवेत्ता अबुल फिदा का जन्म दमिश्क में ६७२ हिज़री (१२७३ ई०) में हुमा था। बादशाह सलादीन के पिता अय्यूब का सीधा वंशज होने के कारण वह राजवंश का निकट सम्बन्धी था । उसने १३१०६० से १३३१ ई० तक हमा नामक जागीर पर शान्तिपूर्वक राज्य किया। अबुलफिदा के मुख्य ऐतिहासिक ग्रन्थ का विषय 'मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास' है जिसमें संसार की सुष्टि से १३२८ ई. तक का इतिहास वर्णित है। लेखक ने यद्यपि अपने पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों के मतों का ही संकलन किया है और यह कहना कठिन है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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